Allahabad High Court: अध्यापकों को बलि का बकरा बनाने से हाईकोर्ट नाराज

Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मनमानी जांच में सहायक अध्यापक नियुक्ति में मिलीभगत के दोषी अधिकारियों को सेवानिवृत्ति का रास्ता देकर अध्यापकों को बलि का बकरा बनाने की आलोचना की है और कहा है कि अभी तक नियमानुसार नियुक्त याचियों का बी एस ए द्वारा दिया गया अनुमोदन वापस नहीं लिया गया है और न ही विभागीय जांच कर उन्हें निलंबित या बर्खास्त किया गया है तो उन्हें सेवा में बरकरार माना जाएगा।और वेतन पाने का हकदार होगा। कोर्ट ने राज्य सरकार को याचियों को बकाया वेतन सहित सेवा जनित प्रोन्नति आदि सभी परिलाभ चार माह में दिए जाय।
यह आदेश न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल ने केशवनाथ सीनियर बेसिक स्कूल होरैया रामनगर , विधमौवा,जौनपुर के सहायक अध्यापक संजय कुमार सिंह व तीन अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।
स्कूल का संचालन प्राधिकृत नियंत्रक को सौंपा गया था।उसने बी एस ए जौनपुर से खाली पद भरने का अनुमोदन लेकर चयन समिति के माध्यम से साक्षात्कार लिया और याचियों का चयन किया गया।उनकी नियुक्ति का अनुमोदन भी बी एस ए ने प्रदान कर दी।
याचियों ने पदभार ग्रहण कर लिया और उन्हें नियमित वेतन दिया जाने लगा।

इसी बीच बेचई सिंह की याचिका पर हाईकोर्ट से पारित अंतरिम आदेश पर 2008 में एक जांच की गई और याचियों व राज्य प्राधिकारियों की मिलीभगत का आरोप लगाते हुए याचियों का वेतन रोक दिया गया। एफआईआर भी दर्ज की गई और पुलिस ने चार्जशीट भी दाखिल कर दिया।जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।अंतरिम आदेश जारी किया गया।

वेतन रोकने को भी चुनौती दी गई।दलील दी गयी कि याचियों की नियुक्ति नियमानुसार की गई है।कोई अनियमितता नहीं पाई गई है।बी एस ए ने अनुमोदित भी किया है जिसे अभी तक वापस नहीं लिया गया है।कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति को अवैध नहीं कहा जा सकता क्योंकि चयन साक्षात्कार जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के नामित व्यक्ति की उपस्थिति में किए गए थे। यह कहा गया कि जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी की संतुष्टि के बाद ही याचिकाकर्ताओं को 21अगस्त 2003 को स्वीकृति दी गई थी।

न्यायालय ने कहा कि ऐसी स्थिति में अनुशासनात्मक जांच किए बिना सेवा समाप्ति नहीं की जा सकती।

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