Dalit Politics: देश की दलित राजनीति की सबसे बड़ी नेता अभी तक मायावती ही मानी जाती हैं। लेकिन 2014 के बाद बीएसपी का हाशिये पर पहुंच जाना और मायावती का एक्टिव पॉलिटिक्स में नाम का दखल नये समीकरण पैदा कर रहा है। दलित राजनीति में इसी के चलते नए चेहरे ‘चन्द्रशेखर आजाद’ का उदय हुआ है। चन्द्रशेखर आजाद दलित राजनीति को नई धार तो दे ही रहे हैं साथ ही बीएसपी के जनक कांशीराम के उस सपने को भी नया आयाम देते दिखते हैं। दूसरी ओर मायावती ने अपने भतीजे आकाश के हाथ बीएसपी की कमान सौंप दी है जो इस बात की तस्दीक करता है की अब बीएसपी परिवारवाद की जद में है।
मायावती सार्वजनिक मंचों पर कम ही मुस्कुराती हैं। 23 अगस्त 2023 की सुबह अपनी मुस्कुराहट के साथ मायावती ने भतीजे आकाश आनंद के कंधे पर हाथ रखकर पार्टी नेताओं से रू-ब-रू करवाया। बीएसपी को आकाश के रूप में नया मसीहा देने की कोशिश की गयी। आकाश आनंद राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम के प्रभारी बनाए गए हैं, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में उनकी क्या भूमिका होगी, ये मायावती ही तय करेंगी।
अब सवाल ये उठता है की हासिये पर पहुंच चुकी बसपा और मायावती ने आकाश को ही क्यों चुना? क्योंकि, बीएसपी में ये रवायत ही नहीं है की परिवारवाद को बढ़ावा दिया जाए। इस बात को समझने के लिए बीएसपी के जनक और दलितों के नेता कांशीराम के राजनीतिक सफर को देखा जाना चाहिए। कांशीराम ने जीते जी अपने परिवार के किसी भी व्यक्ति को बीएसपी का अध्यक्ष नहीं बनाया। कांशीराम ने मायावती में बीएसपी की कमान संभालने का हौसला देखा। और कांशीराम ने भी बीएसपी की कमान मायावती को इसी उम्मीद के साथ सौंपी की मायावती अब बीएसपी को ना सिर्फ आगे लेकर जाएगी बल्कि दलित और पिछड़ों को भी राजनीति के बलबूते समाज की मुख्यधारा के साथ जोड़ेंगी. 1984, 1985 और 1987 में मायावती लोकसभा चुनाव हारीं। बावजूद इसके कांशीराम ने मायावती को 1989 में फिर मौका दिया और इस बार मायावती ने बिजनौर से अपना 33 साल की उम्र में पहला लोकसभा का चुनाव जीता।
‘तिलक, तराजू और तलवार’ का नारा लेकर चलने वाली बीएसपी को बड़ी कामयाबी तब मिली जब मायावती के साथ सतीश मिश्रा आए। दलित-ब्राह्मण के समीकरण को एक साथ जोड़कर हाथी नहीं गणेश है ब्रह्मा विष्णु महेश है के नारे के साथ बीएसपी ने 2007 में 403 में से 206 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत की सरकार यूपी में बनाई। इस बुलंदी के बाद मायावती आजतक कभी 2007 वाला समीकरण साध नहीं सकी। 2012, 2014, 2019 और 2022 में बीएसपी अपने सबसे बुरे दौर में पहुंची। 2022 के बाद बीएसपी के घनघोर समर्थक को भी आजतक ये समझ नहीं आया की बीएसपी का इतनी तेजी से राजनीतिक विलय कैसे हो गया।
क्या ‘आकाश’ बनेंगे बीएसपी के मसीहा!
बीएसपी अध्यक्ष ने अब पार्टी का जुआ आकाश के कंधे पर रख दिया है। आकाश ने भी सिर हिला कर पार्टी की कमान संभाल ली है। लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यही है की क्या आकाश बीएसपी को वो मुकाम दे पाएंगे जिसकी दरकार अब बीएसपी को है। बीएसपी का काडर और समर्थक मायावती पर अभी भी विश्वास रखता है लेकिन वो आकाश की पैराशूट से पार्टी के सर्वोच्च पद पर लैंडिंग से बिदक भी सकता है।
चन्द्रशेखर आजाद दलितों के नए मसीहा!
और अब इस पूरी चर्चा में चंद्रशेखर की बात ना की जाए तो चर्चा अधूरी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में जन्मे चन्द्रशेखर आजाद आज के दौर के नए दलित नेता हैं। चंद्रशेखर की आवाज आज दलित युवा सुन रहा है। चन्द्रशेखर आजाद ने सतीश कुमार और विनय रतन सिंह के साथ 2014 में भीम आर्मी की स्थापना की। भीम आर्मी भारत में शिक्षा के माध्यम से दलितों की मुक्ति के लिए काम करता है। यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलितों के लिए मुफ्त स्कूल चलाता है। इसी पहल को आगे ले जाते हुए चंद्रशेखर दलितों की आवाज बन रहे हैं।
आजाद पार्टी की स्थापना
15 मार्च को बीएसपी के संस्थापक और दलितों के नेता कांशीराम का जन्मदिन होता है। इसी दिन 2020 में चंद्रशेखर आजाद ने आजाद पार्टी (कांशीराम) की स्थापना की है। आजाद पार्टी की स्थापना के साथ ही यूपी में अब दलितों के पास बीएसपी के अलावा एक नया विकल्प मौजूद है।
आजाद पार्टी (कांशीराम) को विकल्प इसलिए भी कहा जा सकता है क्योंकि अभी तक परंपरागत दलित वोटर बीएसपी को वोट करता रहा है या फिर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को, लेकिन अब दलित वोटर के पास आजाद पार्टी (कांशीराम) भी विकल्प मौजूद है।
चंद्रशेखर बन रहे हैं दलित पिछड़ों और शोषित वर्ग की आवाज
किसान आंदोलन की बात हो या फिर हाथरस रेप। चंद्रशेखर एक आवाज पर शोषितों से ना सिर्फ मिलने पहुंचते हैं बल्कि मदद के लिए हाथ भी आगे बढ़ाते हैं। देश का दलित समुदाय खासतौर पर उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा का दलित अब चन्द्रशेखर को अपना नया दलित नेता स्वीकार कर रहा है। धीरे धीरे दलित युवा मन में चंद्रशेखर अपनी अमिट छाप छोड़ रहे हैं। युवा तेज तर्रार चंद्रशेखर की ठसक और मुछों का ताव दलित युवाओं में जोश भरने का काम कर रहा है। और यही वजह है की पश्चिम उत्तर प्रदेश, हरियाणा और हरियाणा बोर्डर से सटे राजस्थान के जिलो का दलित अब अपनी जाति को छुपाता नहीं बल्कि पूरी ठसक के साथ अपनी जाति बताता है। ये बदलाव दलित राजनीति में बहुत बड़ा है।
बीएसपी के लिए मुसीबत बनेंगे आजाद
बीएसपी परंपरागत पार्टी माइंडसेट के साथ आग बढ़ रही है। आकाश को बेशक बीएसपी की कमान अपनी बुआ से मिल गयी हो लेकिन अभी दलितों के बीच आकाश की पहचान सिर्फ इतनी है की वो मायावती के भतीजे हैं। वहीं, दूसरी ओर चन्द्रशेखर आजाद एक ऐसे युवा नेता हैं जो अपनी मेहनत से आगे बढ़ रहे हैं। युवा जोश के साथ नयी सोच के साथ दलित उत्थान पर काम कर रहे हैं। राजनीति के अखाड़े में पहुंचकर दम भर रहे हैं। दलित युवा और वोटर उनपर आने वाले समय में विश्वास भी करेगा ये माना भी जा रहा है। ऐसे में संभव है की चन्द्रशेखर आने वाले लोकसभा चुनाव और यूपी के विधानसभा चुनाव में बड़ा करिश्मा करने में कामयाब हो जाएं। और अगर ऐसे होता है तो बेशक बीएसपी के लिए आने वाले समय में आजाद पार्टी एक बड़ी चुनौती साबित हो जाएगी। और ऐसे होने की संभावना इसलिए भी ज्यादा है की अब आजाद पार्टी एक तरफ समाजवादी पार्टी के साथ अपनी पींगे बढ़ा रही है तो दूसरी ओर बिहार, राजस्थान और हरियाणा में छोटे दलों के साथ भी हाथ मिला रही है।
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