Gyanvapi Survey Report: गुरुवार २५ जनवरी की रात १० बजे जैसे ही वाराणसी के जिला अदालत ने ज्ञानवापी परिसर के एएसआई सर्वे की रिपोर्ट हिंदू और मुस्लिम पक्ष के वकीलों को सौंपी वैसे ही मीडिया सहित पूरे भारत में एक बार फिर करंट फैल गया। इस बार कहानी केवल उत्तर भारत ही नहीं बल्कि दक्षिण भारत तक गई है।
क्यों कि एएसआई को सर्वेक्षण के दौरान जो साक्ष्य मिले हैं कर्नाटक आंध्र प्रदेश और केरल-तमिलनाडू तक फैल गई है। जब-जब एएसआई की सर्वे रिपोर्ट में मिले सबूतों का जिक्र होगा तब तक दक्षिण भारत के हिंदू-सनातियों का ध्यान नैसर्गिक रूप से इस मुद्दे की ओर आकृष्ट करेगी। एएसआई ने अदालत को जो रिपोर्ट सौंपी है, उसको तैयार करने वाले शख्स का नाम है प्रोफेसर आलोक त्रिपाठी। इस रिपोर्ट को तैयार करने में प्रो. आलोक त्रिपाठी को डॉक्टरेट की उपाधि रखने वाले आठ लोगों ने सहयोग किया है। जिनमें से २ मुस्लिम हैं। इन सभी ने लोकेशन, लाइब्रेरी सोर्स जैसे- शतपथ ब्राह्मण, गोपथ ब्राह्मण, ब्रहद्रणायक उपनिषद और पाणिनी के अष्ध्यायी, महाभारत के अनुशासनपर्व, बुद्धिष्ट ग्रंथ महावास्तु, बुद्धचरित और जेतकास आदि का संदर्भों के आधार पर ज्ञानवापी का सर्वे किया है। इसके अलावा यूरोपियन और चाईनीज यात्रियों के यात्रा संस्मरण का भी हवाला दिया गया है। जिसमें खास तौर पर ह्वेनसांग का यात्रा संस्मरण है।
इस टीम ने ढ़ेरों तथ्यात्मक और वैज्ञानिक अध्ययन करने के बाद रिपोर्ट में कोर्ट के निर्देशों और सवालो का जवाब देते हुए ‘ब्रीफ फाइंडिंग्स ऑफ सर्वे’ के बिंदु नंबर 7 प्रीएग्जिस्टिंग स्ट्रक्चर की व्याख्या करते हुए अंत में स्पष्ट लिखा है कि, ‘It can be said that there existed a large Hindu temple, prior to the construction of the existing Structure.
(यह कहा जा सकता है कि मौजूदा ढांचे के निर्माण से पहले, वहां एक बड़ा हिंदू मंदिर मौजूद था)।’ इतना ही नहीं इसी रिपोर्ट के पेज नम्बर १३७ के अंतिम लाइनों और पेज नम्बर १३८ की प्रारंभिक लाइनों में लिखा है, ‘The Arabic-Persian inscription inside a room mentions taht the mosque was built in 20th regnal year of Aurangzeb(1676-77CE). Hence, the pre-existing structure appears to have been destroyed in the 17th century, during the reign of Aurangzeb, and part of it was modified and reused in the existing structure.
(एक कमरे के अंदर अरबी-फारसी शिलालेख में उल्लेख है कि मस्जिद का निर्माण औरंगजेब के 20वें शासनकाल (1676-77 ई.) में किया गया था। इसलिए, ऐसा प्रतीत होता है कि पहले से मौजूद संरचना को 17वीं शताब्दी में औरंगजेब के शासनकाल के दौरान नष्ट कर दिया गया था, और इसके कुछ हिस्से को संशोधित किया गया था और मौजूदा संरचना में पुन: उपयोग किया गया था)।’
इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद हिन्दू पक्ष के वकील हरिशंकर जैन और विष्णु जैन ने कहा कि अब हिन्दुओं को वहां पूजा-पाठ की अनुमति मिलनी चाहिए।
एएसआई के साइंटिफिक सर्वे की खुछ खास बातें-
1. कुल ८३९ पन्नों की एएसआई के सर्वे रिपोर्ट
2. सर्वे रिपोर्ट में हिंदू मंदिर होने के १२४ से ज्यादा सबूत
3. सभी साक्ष्यों की वैज्ञानिक जांच की गई
4. सर्वे में पाए गए शिलालेख, तमिल, तेलगू, संस्कृत, ग्रांथिक और नागरी लिपियों में हैं
5. सर्वे में पाई गई मूर्तियों में दिकपाल, द्वारपाल, मकर, विष्णु, शिव, गणेश व अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां हैं
6. मस्जिद से पहले वहां बने मंदिर में बड़ा केंद्रीय कक्ष और उत्तर की ओर छोटा कक्ष था।
7. 17वीं शताब्दी में मंदिर को तोड़कर उसके हिस्से को मस्जिद में समाहित किया गया।
8. मस्जिद के निर्माण में मंदिर के पिलर के साथ ही अन्य हिस्सों का बिना ज्यादा बदलाव किए इस्तेमाल किया गया।
9. कुछ पिलर्स से हिन्दू चिह्नों को मिटाने की कोशिश की गई।
10. मस्जिद की पश्चिमी दीवार पूरी तरह हिन्दू मंदिर का हिस्सा है।
11. सर्वे में 32 शिलापट और पत्थर मिले हैं, जो वहां पहले हिन्दू मंदिर होने के साक्ष्य हैं।
12. शिलापट पर जनार्दन, रुद्र और उमेश्वर लिखा है, जबकि एक अन्य शिलापट में ‘महामुक्ति मंडप’ लिखा है।
13. मस्जिद के कई हिस्सों में मंदिर के निशान यथावत हैं।
14. मस्जिद बनाते वक्त शिलापट के साक्ष्यों को मिटाने की कोशिश की गई है।
वो मूल बिंदू जिन पर एएसआई ने साइंटिफिक सर्वे किया-
– दर असल, कोर्ट की जिज्ञासा पर ‘एएसआई को सर्वे करने के बाद यह बताना था कि मौजूदा ढाँचा क्या किसी पहले से मौजूद मंदिर के ऊपर बनाया गया है?
– एएसआई ने, ज्ञानवापी की पश्चिमी दीवार की उम्र और निर्माण के स्वरूप का पता करने के लिए वैज्ञानिक जाँच की।
– एएसआई को पश्चिमी दीवार के नीचे जाँच के लिए जीपीआर (ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार) का इस्तेमाल किया।
– एएसआई ने ज्ञानवापी के तीन गुंबदों के नीचे और ज्ञानवापी के सभी तहखानों की जाँच की है।
– एएसआई को अपनी जाँच में बरामद की गई सभी कलाकृतियों की एक सूची बनाई है।
– एएसआई ने यह भी लिखा है कि कौन सी मूर्ति कहाँ से बरामद हुई और कार्बन डेटिंग के ज़रिए उन मूर्तियों की उम्र और स्वरूप का पता लगाया गया है।
– एएसआई ने ज्ञानवापी में मिले सभी पिलर्स और प्लेटफॉर्म की साइंटिफिक जाँच कर उसकी उम्र, स्वरूप और निर्माण की शैली को पता लगाया गया है।
– कार्बन डेटिंग, ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार और अन्य वैज्ञानिक तरीक़ों से ज्ञानवापी के ढांचे के निर्माण की उम्र, और निर्माण के स्वरूप की पहचान की गई है।
– एएसआई के सर्वे में बरामद मूर्ति और ढाँचे में पाई गई ऐतिहासिक और धार्मिक वस्तुओं की भी जाँच की गई है।
कब और कैसे शुरू हुआ ज्ञानवापी का सर्वे-
पिछले साल चार अगस्त को एएसआई ने कड़ी सुरक्षा के बीच में अपना सर्वे शुरू किया।
एएसआई की टीम में एएसआई के प्रोफ़ेसर आलोक त्रिपाठी, डॉ. गौतमी भट्टाचार्य, डॉ. शुभा मजूमदार, डॉ. राज कुमार पटेल, डॉ. अविनाश मोहंती, डॉ. इज़हर आलम हाशमी, डॉ. आफताब हुसैन, डॉ. नीरज कुमार मिश्रा और डॉ. विनय कुमार रॉय जैसे एक्सपर्ट्स शामिल थे।
सर्वे की संवेदनशीलता को देखते हुए अदालत ने सर्वे के दौरान मीडिया की रिपोर्टिंग पर रोक लगा दी थी।
अदालत ने ढाँचे को बिना नुक़सान पहुँचाए सर्वे करने के आदेश दिए थे लेकिन मिट्टी और मलबे को देखते हुए सभी पक्षों की सहमति से सभी सावधानी बरतते हुए मलबा हटाया गया।
ज्ञानवापी के चारों तरफ केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों का घेरा है जिसकी वजह से बार-बार मस्जिद से अंदर बाहर जाना मुश्किल होता है।
चार महीने चले इस सर्वे में एएसआई की टीम और मज़दूरों ने गर्मी और उमस भरे मॉनसून के दिनों में लगतार काम किया।
कुछ तहखानों में बिजली नहीं थी और शुरुआती दिनों में टॉर्च और रिफ्लेक्टर की रोशनी से सर्वे किया गया।
तहखानों में काम करते हुए एएसआई की टीम को हवा की कमी भी महसूस हुई और बाद में लाइट और पंखे लगा कर काम किया गया।
बारिश के मौसम में तिरपाल लगा कर खुदे हुए हिस्से को ढँका गया और सर्वे का एक कैंप कार्यालय बनाया गया।
अदालत की जिज्ञासा, निर्देश और एएसआई का सर्वे और मुस्लिम पक्ष
वाराणसी ज़िला अदालत ने जुलाई २०२३ में एएसआई को मस्जिद परिसर का सर्वे करने का निर्देश दिया था। एएसआई सर्वे का आदेश देते हुए वाराणसी के ज़िला जज ने अपने आदेश में लिखा था, “अगर प्लॉट और ढाँचे का सर्वे और वैज्ञानिक जाँच होती है तो उससे अदालत के सामने सही तथ्य आएँगे, जिससे मामले का अदालत में न्यायसंगत और उचित तरीक़े से निपटारा हो सकेगा।” जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था तो सुप्रीम कोर्ट ने एएसआई के सारनाथ सर्किल के सुपरिन्टेंडिंग आर्कियोलॉजिस्ट को सेटलमेंट प्लॉट नंबर 9130 (मौजूदा ज्ञानवापी परिसर) के भू-भाग और भवन (मस्जिद की इमारत) का सर्वे जारी रखने का निर्देश दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा कि एएसआई ऐसे तरीक़े से सर्वे करेगी, जिससे कोई टूट-फूट न हो। सुप्रीम कोर्ट के सवाल पर केंद्र सरकार की ओर से सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने आश्वासन दिया कि सर्वे में न ही खुदाई की जाएगी और न ढाँचे को तोड़ा जाएगा।
सार्वजनिक की गई एएसआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि चार महीने के अपने सर्वे में वैज्ञानिक अध्ययन-सर्वेक्षण, वास्तुशिल्प अवशेषों, विशेषताओं, मूर्तियों- कलाकृतियों, और शिलालेखों के अध्ययन के आधार पर यह आसानी से कहा जा सकता है कि मौजूदा संरचना के निर्माण से पहले यहाँ एक हिंदू मंदिर मौजूद था।
मुस्लिम पक्ष का कहना है कि उन्हें भी देर रात एएसआई की रिपोर्ट की कॉपी मिल गई थी और अभी रिपोर्ट वकीलों के पास है।
ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन देखने वाली अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद के जॉइंट सेक्रेटरी एसएम यासीन ने कहा, “यह एक रिपोर्ट है, फ़ैसला नहीं है। चूंकि रिपोर्ट लगभग 839 पन्नों की है। इसके अध्ययन और विश्लेषण में समय लगेगा। एक्सपर्ट्स से राय ली जाएगी। अदालत में विचार के लिए ले जाया जाएगा।”
मस्जिद पक्ष का मानना है कि ज्ञानवापी मस्जिद में अकबर से लगभग 150 साल पहले से मुसलमान नमाज़ पढ़ते चले आ रहे हैं। एसएम यासीन कहते हैं, “आगे अल्लाह की मर्ज़ी। हमारी ज़िम्मेदारी मस्जिद को आबाद रखने की है। मायूसी हराम है, सब्र से काम लेना होगा। हमारी अपील है कि बहस से बचा जाए।”
एएसआई ने अपने सर्वे में ज्ञानवापी मस्जिद में सील किए गए वज़ूखाने (शिवलिंग) का वैज्ञानिक सर्वे नहीं किया है। क्यों कि सुप्रीम कोर्ट ने उसे सील कर दिया है, और वाराणसी के पुलिस प्रशासन को निर्देश दिए थे कि सील किए गए स्थान की सुरक्षा की जाए। वहां कोई भी व्यक्ति न पहुंचे। लेकिन हाल ही में हिंदू पक्ष ने शिवलिंग के अर्घा (वजूखाने) की सफाई की याचिका लगाई थी। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था।
मासीर-ए-आलमगीरी में क्या लिखा है
एएसआई का कहना है कि औरंगज़ेब की जीवनी मासीर-ए-आलमगीरी में लिखा है कि औरंगज़ेब ने अपने सभी प्रांतों के गवर्नरों को काफ़िरों के स्कूलों और मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया था।
एएसआई के मुताबिक़ इसका ज़िक्र जदुनाथ सरकार की 1947 में मासिर-ए-आलमगीरी के अंग्रेज़ी अनुवाद में भी है।
जदुनाथ सरकार के मासीर-ए-आलमगीरी के अंग्रेज़ी अनुवाद के हवाले से एएसआई ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि, “2 सितंबर 1669 को यह बात दर्ज की गई कि औरंगज़ेब के आदेश के बाद उनके अधिकारियों ने काशी में विश्वनाथ का मंदिर तोड़ दिया।”
एएसआई कहता है कि यह शिलालेख हिंदू मंदिर के पत्थरों पर पहले से मौजूद थे जिनका मस्जिद के निर्माण और मरम्मत में इस्तेमाल हुआ। एएसआई के मुताबिक़, मस्जिद में इबादत के लिए उसके पूर्वी हिस्से में तहखाने बनाए गए और मस्जिद में चबूतरे और ज़्यादा जगह भी बनाई गई। एएसआई रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्वी हिस्से में तहखाने बनाने के लिए मंदिर के पिलर्स का इस्तेमाल किया गया। एक तहखाने में एक स्तंभ का इस्तेमाल किया हुआ जिस पर घंटियाँ, दीपक रखने की जगह और समवत के शिलालेख मौजूद हैं। जबकि दूसरी जगह मिट्टी के नीचे दबी हुई हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियाँ भी बरामद हुईं।
स्तंभ और भित्ति स्तंभ
एएसआई की रिपोर्ट के मुताबिक़ मस्जिद को बड़ा करने के लिए और उसके सहन (आँगन) को बनाने के लिए पहले से मौजूद मंदिर के खंभों को थोड़ा मॉडिफाई करके बनाया गया था। खंभों की गहनता से जाँच से यह बात सामने आई है कि वो मूल रूप से पहले से मौजूद हिंदू मंदिर का हिस्सा थे।
इन पिलर्, को मस्जिद बनाने के लिए इस्तेमाल में लाने के लिए इनमे मौजूद कमलपद के बगल फूलों का डिज़ाइन बनाया गया। एएसआई का कहना है कि मौजूदा संरचना (मस्जिद) की पश्चिमी दीवार का शेष भाग पहले से मौजूद हिंदू मंदिर है।
एएसआई के मुताबिक़ यह पश्चिमी दीवार,”पत्थरों से बनी है और इसे क्षैतिज साँचों से सजाया गया है। यह पश्चिमी दीवार पश्चिमी कक्षों के बचे के हिस्सों, केंद्रीय कक्ष के पश्चिमी प्रोजेक्शन्स और उत्तर और दक्षिण में दो कक्षों की पश्चिमी दीवारों से बनी है। दीवार से जुड़ा केंद्रीय कक्ष अब भी पहले जैसा मौजूद है और बगल के दोनों कक्षों में बदलाव किए गए हैं।”
मंदिर के उत्तर और दक्षिण के प्रवेश द्वारों को सीढ़ियों में तब्दील कर दिया था और उत्तरी हॉल के प्रवेश द्वार में बनी हुई सीढ़ियाँ आज भी इस्तेमाल में हैं।
केंद्रीय कक्ष और मुख्य प्रवेश द्वार
एएसआई की रिपोर्ट कहती है कि मंदिर में एक बड़ा केंद्रीय कक्ष (सेंट्रल चैम्बर) हुआ करता था और उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में एक-एक कक्ष थे।
एएसआई के मुताबिक़ पूर्व की संरचना (मंदिर) का जो केंद्र कक्ष था, वो अब मौजूदा संरचना (मस्जिद) का केंद्रीय कक्ष है।
एएसआई का मानना है कि मंदिर के केंद्रीय कक्ष का मुख्य प्रवेश द्वार पश्चिम से था जिसे पत्थर की चिनाई से ब्लॉक कर दिया गया था। और पत्थर से ब्लॉक किए गए मुख्य प्रवेश द्वार के दूसरी ओर एक ब्लॉक बनाया गया।
सर्वे की टीम में कौन-कौन शामिल: आर्कियोलॉजिस्ट, आर्कियोलॉजिकल केमिस्ट, एपीग्राफिस्ट, सर्वेयर, फोटोग्राफर और अन्य टेक्निकल एक्सपर्ट्स ने इन्वेस्टिगेशन और डॉक्यूमेंटेशन किया। जीपीआर (ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार) सर्वेयर ने जमीन के नीचे क्या है यह पता लगाने की कोशिश की। इस सर्वे में एएसआई को ज्ञानवापी परिसर में भव्य हिन्दू मंदिर तोड़कर उसके ढांचे पर मस्जिद निर्माण के प्रमाण मिले हैं।
जिला कोषागार में जमा करवाई गईं सभी चीजें
सर्वे में मिले सभी 250 साक्ष्य सामग्रियों को एएसआई ने जिलाधिकारी की सुपुर्दगी में कोषागार में जमा कराया है। इसकी एक सूची भी जिला जज की अदालत में जमा है। एएसआई की सर्वे रिपोर्ट में कोषागार में जमा सामग्रियां भी हिन्दू पक्ष के लिए अहम प्रमाण हैं।
ज्ञानवापी परिसर की सर्वे में मिली खंडित मूर्तियां, चिन्ह, आकृतियां, दरवाजे के टुकड़े, घड़े, हाथी, घोड़े, कमल के फूल सहित अन्य सामग्रियां मिली थीं। इन्हें छह नवंबर 2023 को जिलाधिकारी की सुपुर्दगी में दिया था। इन सभी सामग्रियों को जिला जज की अदालत के आदेश पर जरूरत पड़ने पर जिलाधिकारी न्यायालय में प्रस्तुत भी करेंगे।
हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन की प्रेस कॉन्फ्रेंस
हिंदू पक्ष की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने मीडिया से कहा कि सर्वे से साबित हो गया कि ज्ञानवापी बड़ा हिंदू मंदिर था। उसे तोड़कर मस्जिद का रूप दिया गया। अब सील वजूखाने के सर्वे का अनुरोध किया जाएगा। विष्णु जैन ने कहा कि रिपोर्ट से हिंदू पक्ष का वह दावा सच साबित हुआ है। दरअसल, सील वजूखाने को छोड़कर ज्ञानवापी परिसर की सर्वे रिपोर्ट एएसआई ने जिला जज की अदालत में 18 दिसंबर 2023 को दाखिल की थी।
कब-कब क्या हुआ
इससे पहले क्या हुआ
वर्ष 2021 में मां शृंगार गौरी की नियमित पूजा के लिए जिला अदालत में पूजा के लिए अर्जी लगाया गई थी।
मां शृंगार गौरी केस की सुनवाई के क्रम में ही जिला जज की अदालत ने ज्ञानवापी के सील वजूखाने को छोड़कर परिसर के एएसआई सर्वे का आदेश दिया था। मां शृंगार गौरी केस राखी सिंह, सीता साहू, रेखा पाठक, मंजू व्यास और लक्ष्मी देवी की ओर से सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में 17 अगस्त 2021 को दाखिल किया गया था।
अदालत के आदेश पर एक अधिवक्ता आयुक्त की अगुवाई में 6-7 मई 2022 को ज्ञानवापी में सर्वे की कार्रवाई हुई थी। इसके बाद 14 से 16 मई 2022 तक तीन अधिवक्ता आयुक्त ने ज्ञानवापी परिसर में सर्वे किया था। 16 मई 2022 को ही ज्ञानवापी स्थित वजूखाने में आदि विश्वेश्वर का शिवलिंग मिलने का दावा किया गया था। उसी दिन हिंदू पक्ष की मांग पर अदालत के आदेश से शिवलिंग वाले स्थान को (जिसे मुस्लिम पक्ष वजूखाना कहता है) को सील कर दिया गया था।
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