MP Election: मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव नतीजे आने को हैं। पिछले चुनाव में राजस्थान और मध्यप्रदेश में दूध से जली कांग्रेस इस बार कहीं ज्यादा सतर्क है।
वजह भारतीय जनता पार्टी का ऑपरेशन लोटस, यानि कांग्रेस के विधायकों को अपने पाले में करके बीजेपी की सरकार बनाने की कवायद… 2018 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ तीनों ही राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी थी, लेकिन बीजेपी के ऑपरेशन लोटस ने मध्यप्रदेश की सरकार को 18 महीने में ही पलटकर रख दिया था।
कांग्रेस के कई विधायक टूटकर बीजेपी में शामिल हो गए थे और मध्यप्रदेश में एक बार फिर भाजपा सरकार की स्थिति बन गई थी। अनुमान है कि इस बार भी किसी पार्टी को बड़ा बहुमत नहीं मिलने जा रहा है। मुकाबला करीबी ही रहेगा। जाहिर है बीजेपी एक बार फिर अपनी सरकार की संभावनाएं तलाशने में जुट गई है।
ऐसे में कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती है उसके विधायकों को एकजुट रखना। इसे राजनीति की भाषा में बाड़ाबंदी कहा जाता है और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बाड़ाबंदी में माहिर हैं। उन्होंने अपनी ही सरकार के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की बगावत को जिस चालाकी के साथ फेल कर दिया था, उससे उनकी राजनीतिक कुशलता को सभी मानने लगे हैं। 3 दिसंबर को तीनों ही राज्यों के चुनाव परिणाम सामने आएंगे। इसी के साथ तस्वीर साफ हो जाएगी, लेकिन बीजेपी का ऑपरेशन लोटस चला तो क्या संभावनाएं हो सकती हैं चलिए समझते हैं…
अंदर ही अंदर दोनों खौफजदा
दोनों पार्टियों की ओर से यह दावा किया जा रहा है कि उन्हें स्पष्ठ बहुमत हासिल होगा, लेकिन हकीकत यह है कि दोनों ही अंदर ही अंदर खौफजदा हैं। राजस्थान में कांग्रेस की तरह ही बीजेपी भी आशंकित है कि उसे स्पष्ट बहुमत नहीं मिल रहा है। अगर दोनों पार्टियां 90 के आसपास रहती हैं तो ऐसे में बाड़ेबंदी होना स्वाभाविक है।
अभी से दोनों पार्टियों की योजना बनाई जा रही है कि बहुमत के करीब होने की स्थिति में विधायकों की बाड़ाबंदी कहां की जाए। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस अपने और निर्दलीय विधायकों को कर्नाटक और बीजेपी गुजरात या फिर हरियाणा के मानेसर में बाड़ेबंदी कर सकती है। केंद्रीय नेता इस दिशा में काम करने के लिए सक्रिय हो गए हैं।
यदि कांग्रेस बहुमत के आसपास रहती है तो संभावना यही है कि अशोक गहलोत सरकार बनाने में कामयाब हो सकते हैं। राजनीति के माहिर खिलाड़ी गहलोत को बाड़ेबंदी और जोड़तोड़ का खूब तजुर्बा है, तभी तो बीजेपी के अथक प्रयासों के बावजूद वह गहलोत की सरकार को गिराने में नाकामयाब रही। जबकि कर्नाटक, एमपी और महाराष्ट्र में उसने निर्वाचित सरकार को गिराकर अपनी सरकार बनाई।
अमित शाह भी हैं बड़े बाजीगर
फिलहाल भारी तादाद में हुए मतदान ने बीजेपी और कांग्रेस दोनों की नींद उड़ाकर रख दी है । कांग्रेस का दावा है कि तादाद से ज्यादा मतदान उनके अनुकूल रहा, जबकि ऐसा ही दावा बीजेपी के नेता भी कर रहे हैं। हकीकत क्या है, यह 3 दिसम्बर को पता लगेगा। राजस्थान में बराबर की स्थिति होने पर बीजेपी की ओर से स्थानीय नेताओं के बजाय ऑपरेशन की बागडोर स्वयं अमित शाह अपने हाथ मे ले सकते हैं।
कमलनाथ की गिरा दी थी सरकार
2018 में मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए थे। इस चुनावों में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था। कांग्रेस के खाते में 114, तो बीजेपी के खाते में 109 सीटें आई थीं। कांग्रेस को निर्दलीय और सपा-बसपा का साथ मिला था, जिसके बाद प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी थी। कमलनाथ मुख्यमंत्री बने थे।
करीब 14 महीने तक सरकार अपना काम करती रही, लेकिन मार्च 2020 में सिंधिया ने खेल कर दिया। 2020 मार्च में कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी का दामन थाम लिया था। इस वजह से 15 महीनों की कमलनाथ सरकार गिर गई थी। सिंधिया के साथ उनके गुट के 22 कांग्रेस विधायकों ने भी बीजेपी की सदस्यता ले ली।
सिंधिया के साथ इन्होंने दिया था इस्तीफा
इसमें प्रधुम्र सिंह तोमर, रघुराज कंसाना, कमलेश जाटव, रक्षा संत्राव, जजपाल सिंह जज्जी, इमरती देवी, प्रभुराम चौधरी, तुलसी सिलावट, सुरेश धाकड़, महेन्द्र सिंह सिसोदिया, ओपीएस भदौरिया, रणवीर जाटव, गिरराज दंडोतिया, जसवंत जाटव, गोविंद सिंह राजपूत, हरदीप डंग, मुन्नालाल गोयल, ब्रिजेंद यादव, मोहन सिंह राठौड़, बिसाहूलाल सिंह, ऐदल सिंह कसाना और मनोज चौधरी शामिल थे.
बेंगलुरु चले गए थे सब विधायक
मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को गिरे हुए 3 साल पूरे हो चुके हैं। उस वक्त यह सियासी घटनाक्रम पूरे 17 दिन तक चला था और सभी बागी विधायक फोन बंद करके बेंगलुरु चले गए थे।
राजस्थान में कांग्रेस छोड़ना चाह रहे थे पायलट
वहीं राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के कांग्रेस छोड़ने की अटकलें भी 2020 से ही लगाई जा रही हैं, लेकिन पायलट कांग्रेस नहीं छोड़ रहे हैं। पायलट ने 2020 में गहलोत के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंककर सरकार को मुश्किल में डाल दिया था। पायलट ने जब 2020 में बगावत की थी तो अलग पार्टी बनाने की घोषणा नहीं की।
सचिन पायलट ने सुलह करना ही बेहतर समझा। सचिन पायलट साढ़े चार से गहलोत सरकार पर दबाव में बनाकर अपनी मांगें पूरी करवाने में सफल रहे हैं। सरकार और संगठन की नियुक्तियों में पायलट समर्थकों को खासी तवज्जो मिली है।
(द सूत्र से साभार)
The Board of Control for Cricket in India (BCCI) has revealed the 15-member squad for…
Here’s the complete list of this year’s Golden Globe winners
Australia defeated India by six wickets in the fifth and final Test match in Sydney,…
The Supreme Court today directed the tagging of a plea filed by AIMIM President Asaduddin…
Mass Shooting in Queens: At least 10 people were injured during a mass shooting outside the…
Renowned tabla maestro Zakir Hussain passed away last night in the United States at the…