‘तंगहाल पाकिस्तान कुछ भी कर गुजर सकता है। पाकिस्तान डॉलर के लिए चीन के लिए धोखा दे ही नहीं सकता बल्कि धोखा देने की पूरी प्लानिंग कर चुका है।एक पहलू यह भी हो सकता है कि पाकिस्तान अमेरिका का भय दिखाकर चीन को ब्लैकमेल कर रहा है।एक सोची समझी साजिश के तहत पाकिस्तान सरकार ने अमेरिकी राजदूत डोनाल्ड ब्लोम को ग्वादर और गिलगिट बालटिस्तान का दौरा करवाया।ये दोनों इलाके रणनीतिक तौर पर चीन के लिए बेहद संवेदनशील हैं।’
चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत अरबों डॉलर पाकिस्तान में इन्वेस्ट किए हैं। चीन की इसी परियोजना से जुड़ा है ग्वादर बंदरगाह। अगर ग्वादर में कोई अमेरिकी (America) डिप्लोमेट विज़िट करता है तो इसके मायने हैं कि पाकिस्तान ने चीन के साथ हुए ख़ुफ़िया एग्रीमेंट की जानकारी अमेरिका (America) के साथ साझा कर दी है। यह चीन के लिए एक बड़े ख़तरे की घण्टी है। ऐसा कहा जाता है कि पाकिस्तान ने अमेरिका के कहने पर रूप के ख़िलाफ़ यूक्रेन को हथियारों की सप्लाई की है। इसके बदले में अमेरिका ने आईएमएफ़ से बेल आउट पैकेज दिलाने में मदद की है।’
इस महीने की शुरुआत में एक अमेरिकी एनजीओ द इंटरसेप्ट की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि पाकिस्तान ने गुप्त रूप से हथियारों की बिक्री की थी जिनका इस्तेमाल रूस के साथ चल रहे युद्ध के बीच यूक्रेनी बलों की सहायता के लिए किया गया था।
द इंटरसेप्ट की एक हालिया रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि पाकिस्तान ने चल रहे संघर्ष में रूस के खिलाफ यूक्रेनी बलों का समर्थन करने के लिए गुप्त रूप से हथियार प्रदान किए, अप्रत्यक्ष रूप से इस्लामाबाद को संघर्ष में शामिल किया। पाकिस्तान को दीर्घकालिक युद्ध के लिए आवश्यक आवश्यक हथियारों के उत्पादन केंद्र के रूप में मान्यता प्राप्त है। हालाँकि पाकिस्तान ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया जिसमें उस पर आईएमएफ से फंडिंग हासिल करने के लिए यूक्रेन को हथियार बेचने का आरोप लगा था।
द इंटरसेप्ट का दावा है कि पाकिस्तानी सेना के सूत्रों ने उसे कुछ दस्तावेज मुहैया करवाए हैं। इन दस्तावेजों के अनुसार, अमेरिका और पाकिस्तान 2022 की गर्मियों से 2023 के वसंत तक युद्ध सामग्री की बिक्री पर सहमत हुए। रूसी आक्रमण फरवरी 2022 में हुआ।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पाकिस्तान ने हथियारों की बिक्री से राजनीतिक सद्भावना अर्जित की, जिसने बदले में नकदी संकट से जूझ रहे देश को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से राहत पैकेज दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जिस समय सनसनीखेज रिपोर्ट जारी की गई, उसी समय पाकिस्तान में अमेरिकी राजदूत डोनाल्ड ब्लोम को ग्वारदार बंदरगाह का दौरा भी किया। ग्वादर पोर्ट को चीन ने विकसित किया है। यहाँ चीन के सामरिक संपत्तियाँ भी हैं। ग्वादर, चीन के 50 अरब डॉलर की चीन–पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) परियोजना का मुख्य हिस्सा है। यहाँ यह भी ध्यान देने वाली बात है कि पिछले 15 साल में पहली बार कोई अमेरिकी डिप्लोमेट पहली बार ग्वादर गया है। ग्वादर में डोनाल्ड ब्लोम का पहुँचना चीन की पीठ में छुरा घोंपने जैसा है।
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चौंकाने वाली बात यह है कि डोनाल्ड ब्लोम ने इस विज़िट के दौरान स्थानीय अधिकारियों और पाकिस्तानी नौसेना के पश्चिमी कमांडर से मुलाकात की। फिर चीन को चिढ़ाने के लिए ऐसी जगह पर मीडिया से मुलाक़ात की जिसके पीछे ग्वादर पोर्ट नज़र आ रहा था। इस्लामाबाद में अमेरिकी दूतावास ने इस विज़िट के बारे में कहा भी 12 सितंबर को “राजदूत ब्लोम ने ग्वादर बंदरगाह का भी दौरा किया और बंदरगाह संचालन, रीजनल ट्रांसशिपमेंट हब के रूप में ग्वादर की क्षमता और पाकिस्तान के सबसे बड़े निर्यात बाजार को संयुक्त राज्य अमेरिका से जोड़ने के तरीकों के बारे में जानकारी हासिल की।”
अमेरिकी राजदूत का ग्वादर दौरा ऐसे समय में हुआ जब बीजिंग पहले से ही देश में अपने हितों और कर्मियों के खिलाफ बढ़ते खतरों के साथ–साथ सीपीईसी के तहत आने वाली कई प्रमुख परियोजनाओं के लिए पाकिस्तान के विलंबित भुगतान को लेकर इस्लामाबाद से निराश है।
इस्लामाबाद कथित तौर पर सीपीईसी के सबसे बड़े प्रयास मेन लाइन-1 के नाम से मशहूर रेलवे की लागत को 9.9 अरब डॉलर से घटाकर 6.6 अरब डॉलर करने के लिए बीजिंग के साथ बातचीत कर रहा है। कुछ जियो पॉलिटिकल पंडितों का कहना है कि पाकिस्तान अमेरिका से पींगे बढ़ा कर चीन को ब्लैकमेल कर रहा है।
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