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श्रीक्षेत्र_सिद्धगिरि_मठ और स्वामी_अदृश्य_काडसिद्धेश्वर।

भारत पर मुस्लिम आक्रमण के बाद अगली कुछ शताब्दियों तक यहां जो विध्वंस हुआ, उसमें मठ-मंदिरों के बाहरी ढांचे को ही नहीं बल्कि उनसे जुड़ी व्यवस्थाओं को भी निशाना बनाया गया। इसके चलते यहां के अधिकतर पुराने मठ-मंदिर धीरे-धीरे नष्ट होते गए। आज देश में ऐसे कम ही मठ बचे हैं जो हजार वर्ष से अधिक पुराने हों और जिनकी व्यवस्थाएं अखंड रूप से आज तक चलती आ रही हों। ऐसे मठों के बारे में जब चर्चा होती है, तब श्रीक्षेत्र #सिद्धगिरि_मठ का नाम विशेष रूप से लिया जाता है। चूंकि यह मठ #कोल्हापुर, महाराष्ट्र के #कणेरी_गांव में स्थित है, इसलिए कई लोग इसे कणेरी मठ के नाम से भी जानते हैं।

इस मठ से मेरा घनिष्ठ परिचय वर्ष 2015 में तब हुआ जब 19 से 25 जनवरी के बीच यहां #भारत_विकास_संगम का चौथा अखिल भारतीय सम्मेलन आयोजित किया गया। मुझे बताया गया कि यह मठ लगभग 1500 वर्ष पुराना है। इसकी स्थापना तब हुई जब नर्मदा के दक्षिण में चालुक्यों का और उत्तर में सम्राट हर्षवर्धन का शासन था। मठ के लंबे इतिहास में अब तक 49 मठाधिपति हो चुके हैं। इस समय मठ का संचालन इसके 49 वें मठाधिपति पूज्य स्वामी अदृश्य काडसिद्धेश्वर जी कर रहे हैं।

#सिद्धगिरि मठ मठ मूलतः वीर शैव संप्रदाय से जुड़ा है। सन् 1922 से पहले यहां लिंगायत लोगों को छोड़कर कोई और नहीं आता था। 1922 में जब मठ की बागडोर इसके 48वें मठाधिपति श्री मुप्पिन स्वामी जी के हाथों में आई, तब सब कुछ बहुत तेजी से बदलने लगा। उन्होंने मठ के दरवाजे सभी के लिए खोल दिए और इसे धार्मिक पूजा पाठ के साथ-साथ समाज सेवा का एक केन्द्र भी बना दिया। आस-पास के गांवों की शिक्षा पर उन्होंने विशेष ध्यान दिया।

वर्ष 2001 में #मुप्पिन_स्वामी जी के देहावसान के बाद मठ की बागडोर जब स्वामी अदृश्य काडसिद्धेश्वर जो ने संभाली तब से मठ की सामाजिक गतिविधियों में तेजी से विस्तार हुआ है। आपके नेतृत्व में मठ ने अपनी पारंपरिक जिम्मेदारियों को निभाने के साथ-साथ समाज के चंहुमुखी विकास के लिए विविध क्षेत्रों में काम करना शुरू किया। तथापि खेती किसानी और ग्रामीण समाज की #खुशहाली के साथ-साथ भारतीय सभ्यता और संस्कृति का संरक्षण व संवर्धन आपका मुख्य ध्येय बन गया है।

बीते दो दशकों में कणेरी मठ एक धर्मस्थल ही नहीं बल्कि सृजनशील विकास का एक #महातीर्थ भी बन चुका है। इस समय यहां लगभग एक हजार देशी गोवंश की गोशाला के साथ विषमुक्त प्राकृतिक खेती और कृषि आधारित कुटीर उद्योगों पर खूब काम हो रहा है। यहां के लखपति खेती की तो पूरे देश में चर्चा होती है। किसानों के लिए मठ ने जो काम किया है, उसे देखते हुए अभी कुछ वर्ष पहले यहां भारत सरकार की ओर से एक कृषि विज्ञान केन्द्र की भी स्थापना की गई है।

मठ की गतिविधियों में पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान दोनों का संगम दिखाई देता है। यहां एक ओर 200 बेड का एक आधुनिक अस्पताल चलता है तो वहीं साथ में 50 बेड के एक #आयुर्वेदिक_चिकित्सालय की भी व्यवस्था है जहाँ बहुत ही कम खर्चे में गरीबों के लिये कॉर्पोरेट अस्पताल जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं।

यही बात मठ द्वारा संचालित #गुरुकुल में भी दिखाई देती है जहां शिक्षा पूरी तरह निःशुल्क और आवासीय हैl प्राचीन भारत की 14 विद्याओं व 64 कलाओं के साथ पांच भाषाओं को सिखाने वाला यह गुरुकुल अपने आप में अद्भुत है। यहाँ के विद्यार्थियों को पारंपरिक ज्ञान के साथ-साथ वह सब बातें भी सिखाई जाती हैं जिनकी आज की दुनिया में किसी को जरूरत हो सकती है। इस गुरुकुल की कोशिश है कि उसके बच्चे अपने विकास के साथ-साथ एक सुदृढ़ राष्ट्र व प्रेरणादायी समाज के निर्माण में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लें।

पिछले कुछ वर्षों में कनेरी मठ ने देश के सामने सांस्कृतिक पर्यटन का एक नया अध्याय शुरू किया है। यहां का ग्राम्य.जीवन म्यूजियम देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय है। म्यूजियम के साथ-साथ मठ में बने दिव्य गार्डेन, बालवाटिका, प्रेरणा पार्क और माया महल आदि भी पर्यटकों में बहुत लोकप्रिय हैं। स्कूल विद्यार्थियों का तो यहां तांता लगा रहता है। महाराष्ट्र के साथ-साथ कर्नाटक और गोवा के कई स्कूलों के विद्यार्थी यहां नियमित रूप से आते रहते हैं। भारत और भारत की संस्कृति के बारे में उन्हें जो जानकारी किताबों से मिलती है, उसे उन्हें यहां अपनी आंखों से देखने और महसूस करने का मौका मिलता है।

#महाराष्ट्र, #कर्नाटक और #गोवा में मठ का प्रभाव क्षेत्र बहुत पुराना है। यहां कई पीढ़ियों से लाखों लोग मठ से जुड़े हुए हैं। इन सभी के बीच मठ और वर्तमान स्वामी जी के कार्यों की खूब चर्चा होती थी, किंतु अखिल भारतीय स्तर पर मठ के कार्यों से बहुत लोग परिचित नहीं थे। वर्ष 2015 में जब मठ के परिसर में भारत विकास संगम का चौथा सम्मेलन हुआ, तब पहली बार देश भर के सामाजिक कार्यकर्ताओं को मठ की गतिविधियों को नजदीक से देखने और समझने का सौभाग्य मिला। उसके बाद कार्यकर्ताओं के आग्रह पर स्वामी जी ने भी देश भर का सघन दौरा करना शुरू किया।

सिद्धगिरि मठ वास्तव में लोक उत्सवों का मठ है। भांति-भांति के शिविर, प्रवचन और यात्राओं आदि के साथ-साथ यहां कई तरह के उत्सव भी होते रहते हैं जिसमें आम जनता दिल खोलकर हिस्सा लेती है। अभी हाल ही में यहाँ हुए पंचमहाभूत लोकोत्सव की देश भर में खूब चर्चा हुई। वर्ष 2023 के प्रारंभ में आयोजित इस लोकोत्सव के माध्यम से जनता को बताया गया कि पंचमहाभूत क्या होते हैं और उनका एक व्यक्ति के जीवन में क्या महत्व है। लोगों को समझाने के लिए #पंचमहाभूत के सभी पांच तत्वों- आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी के साथ-साथ एक-एक गैलरी आरोग्य और रीसाइक्लिंग जैसे विषय पर भी बनाई गई थी। उपरी तौर पर लोकोत्सव को एक मेले का स्वरूप दिया गया था जिसमें कई तरह के स्टाल्स और अन्य प्रदर्शनियों के साथ-साथ शाम को देश भर के कलाकारों की सांस्कृतिक लहरी गुंजायमान रहती थी। इस लोकोत्सव का ध्येय वाक्य था- जीवन शैली ठीक तो सब ठीक।

पिछले कुछ वर्षों में स्वामी जी ने अपनी सक्रियता से देश भर की सामाजिक गतिविधियों को कई नए आयाम प्रदान किए हैं। उनकी उपस्थिति समाज का काम करने वाले कार्यकर्ताओं को उत्साहित और प्रेरित करती है। अच्छी बात यह है कि इस सबके बीच सिद्धगिरि का अपना रचना संसार भी निरंतर पल्लवित-पुष्पित हो रहा है। यहां आप जब भी आएंगें, आपको कुछ विशेष देखने को मिलेगा। निर्माण और रचना की प्रक्रिया यहां निरंतर चलती रहती है। आज यह प्रक्रिया मठ परिसर के साथ-साथ आस-पास के कई गांवों और शहरों में भी प्रारंभ हो चुकी है। सच कहें तो जो लोग देश के #सर्वांगीण_विकास का सपना देखते हैं, उनके लिए सिद्धगिरि मठ और यहां के स्वामी जी वास्तविक अर्थों में नवतीर्थ और नवदेव की परिकल्पना को साकार करते हैं।

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