पतंजलि आयुर्वेद और दिव्य फार्मेसी के सर्वेसर्वा रामदेव और बालकृष्ण को इन दिनों भ्रामक विज्ञापनों के मामले में कोर्ट केस का सामना करना पड़ रहा है. इसके अलावा अब पतंजलि आयुर्वेद के लिए एक और बुरी खबर सामने आई है. 29 अप्रैल को उत्तराखंड स्टेट लाइसेंसिंग अथॉरिटी ने पतंजलि आयुर्वेद की 14 दवाओं पर बैन लगा दिया और सुप्रीम कोर्ट को इस बात की जानकारी दी.
उत्तराखंड स्टेट लाइसेंसिंग अथॉरिटी ने अपने हलफनामे में यह भी बताया कि इन दवाओं को लेकर पतंजलि आयुर्वेद को समय-समय पर नोटिस भी जारी किया गया था. अथॉरिटी ने ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट 1945 की धारा 159 (1) के तहत पतंजलि आयुर्वेद की मालिकाना हक वाली दिव्य फार्मेसी की श्वासारि गोल्ड, श्वासारि वटी, ब्रोंकोम, श्वासारि प्रवाही, श्वासारि अवलेह, मुक्ता वटी एक्स्ट्रा पावर, लिपिडोम, बीपी ग्रिट, मधुग्रिट, मधुनाशिनी वटी एक्स्ट्रा पावर, लिवामृत एडवांस, लिवोग्रिट, आईग्रिट गोल्ड, पतंजलि दृष्टि आई ड्रॉप को बैन कर दिया है.
पतंजलि आयुर्वेद और दिव्य फार्मेसी के दावों के मुताबिक श्वासारि गोल्ड, श्वसारि वटी, ब्रोंकोम, श्वासारी प्रवाही, और श्वासारि अवलेह दवाएं कफ, कोल्ड, बैक्टेरियल इंफेक्शन, अस्थमा खांसी सर्दी, अस्थमा और सांस से जुड़ी बीमारियों में राहत पहुंचाती हैं. वहीं दिव्य मुक्ता वटी को लेकर कंपनी का दावा है कि यह दवा पेट को साफ करने में कारगर है.
लिपिडोम से कोलेस्ट्रोल को कम करने, बीपी ग्रिट से ब्लड प्रेशर और दिल की समस्या को सही करने, मधु ग्रिट और मधुनाशिनी वटी को शुगर या डायबिटीज में राहत, लिवामृत और लिवोग्रिट को लिवर से संबंधित समस्या को सही करने, आईग्रिट गोल्ड और पतंजलि दृष्टि आई ड्रॉप से आखों की समस्या सही होने का दावा किया जाता है.
पतंजलि को लेकर 16 अप्रैल को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड स्टेट लाइसेंसिंग अथॉरिटी से भी जवाब मांगा था. कोर्ट ने अथॉरिटी से पूछा था कि भ्रामक विज्ञापनों की जानकारी मिलने पर पतंजलि के खिलाफ उसने क्या एक्शन लिया. कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि पूरे मामले में संस्था ने फाइलों को आगे बढ़ाने के अलावा कुछ नहीं किया गया. 30 अप्रैल को हुई सुनवाई में भी कोर्ट ने लाइसेंसिग अथॉरिटी को फटकार लगाई.
इससे पहले साल 2022 में भी मधुग्रिट, आईग्रिट गोल्ड, लिपिडोम, बीपी ग्रिट जैसी दवाओं को बैन किया गया था. लेकिन हफ्ते भर के भीतर ही अथॉरिटी ने यह कहते हुए बैन वापस ले लिया था कि दवाओं को बनाने में हुई गलती के चलते रोक लगाई गई थी.
भारत सरकार की संस्था प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) की आधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, आयुर्वेदिक दवाएं बनाने के लिए लाइसेंस औषधि और प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 के नियम 152 और नियम 155-बी के तहत मिलता है. यह लाइसेंस देने का जिम्मा लाइसेंसिंग ऑफिसर का होता है जिसकी नियुक्ति राज्य सरकार करती है.
वहीं वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की गाइडलाइन के मुताबिक, आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स को भी दवाओं की श्रेणी में रखते हुए प्रमाणित किया जा सकता है लेकिन यह औषधि महानियंत्रक की देख-रेख में होना चाहिए. क्वालिटि काउंसिल ऑफ इंडिया ने स्वेच्छा से आयुर्वेदिक दवाओं के प्रमाणिकरण की योजना को शुरू किया है.
क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया 1860 के सोसायटी पंजीकरण अधिनियम XXI के तहत पंजीकृत एक गैर-लाभकारी संगठन है. इसके अध्यक्ष की नियुक्ति बिजनेस से जुड़े लोगों की सिफारिश पर प्रधानमंत्री करते हैं. यह संस्था प्रोडक्ट्स और सर्विसेज की क्वालिटी के मूल्यांकन का काम करती है.
आयुर्वेदिक डॉक्टरी की प्रैक्टिस के लिए भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद अधिनियम, 1970 के प्रावधानों के मुताबिक रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी है. हालांकि आयुर्वेदिक दवाओं के लिए बिक्री लाइसेंस की जरूरत नहीं होती. अधिनियम के मुताबिक सभी दवाओं पर उसके इस्तेमाल गाइडलाइन की लेबलिंग होना जरूरी है. औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 की धारा 3 (ए) आयुर्वेदिक दवाओं को परिभाषित करती है.
पतंजलि पर ऐसा आरोप है कि उसने अपनी दवाओं को लेकर ऐसे दावे किए थे कि इससे कोरोना, डायबिटीज और कैंसर जैसी बीमारियों का भी इलाज किया जा सकता है. यहां तक कि ये दावे उसकी दवा के विज्ञापनों में भी देखने को मिले थे. इसी संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए उससे माफी मांगने को कहा था और विज्ञापनों पर रोक लगाने का आदेश दिया था.
जबकि 30 अप्रैल को हुई सुनवाई में अथॉरिटी ने कोर्ट को बताया कि पतंजलि और दिव्या फॉर्मेसी के 14 मैनेयुफैक्चरिंग लाइसेंस को तत्काल प्रभाव से 15 अप्रैल को ही रद्द कर दिया गया था. अथॉरिटी के इस जवाब पर कोर्ट का कहना था, “इससे यह पता चलता है कि जब आप कुछ करना चाहते हैं तो वह काम कितनी तेजी से हो सकता है. लेकिन जब आप कोई काम ना करना चाहें तो उसमें सालों भी लग सकते हैं. यह काम आपने केवल 7-8 दिनों मे कर दिया लेकिन पिछले 9 महीनों से आप क्या कर रहे थे. आप अब नींद से जागे हैं.”
कोर्ट ने अथॉरिटी से यह सवाल भी किया कि कितने समय तक इन दवाओं के प्रोडक्शन को सस्पेंड किया गया है? इस पर आयुष विभाग का जवाब था कि पतंजलि के पास अपील दाखिल करने के लिए तीन महीनों का वक्त है. वहीं कोर्ट ने ज्वाइंट डायरेक्टर मिथिलेश कुमार को भी की गई कार्रवाई के बारे में हलफनामा दायर करने का निर्देश सुनाया है.
ड्रग लाइसेंस अथॉरिटी के दायर किए गए हलफनामे पर असंतुष्टि दिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उस पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. पतंजलि मामले पर अगली सुनवाई 14 मई को होनी है, हालांकि कोर्ट ने रामदेव और बालकृष्ण को इस सुनवाई में शामिल होने से छूट दे दी है.
[Courtesy: IndiaTodayHindi]
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