2002 के गोधरा ट्रेन अग्निकांडः चार दोष सिद्ध याचिकाकर्ताओं की जमानत याचिका सुप्रीम कोर्ट ने कर दी खारिज
Godhra train burning incident 2002: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 2002 के गोधरा ट्रेन अग्निकांड मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे तीन आरोपियों की इस घटना में अहम भूमिका का हवाला देते हुए उनकी जमानत याचिका को खारिज कर दिया।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने घटना की गंभीरता और संवेदनशीलता पर जोर दिया, जिसमें कई लोगों को जिंदा जला दिया गया था।
हालाँकि, अदालत ने दोषियों द्वारा दायर अपील को विचार के लिए किसी अन्य पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्णय लिया। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को जमानत देने के लिए परिस्थितियां अनुकूल नहीं हैं। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि यह मामला किसी एक व्यक्ति की हत्या का नहीं बल्कि दर्जनों लोगों की हत्या का है।
गुजरात सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और आरोपी याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने फैसला सुनाया कि जमानत याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।
इससे पहले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट के सामने दलील दी कि तीनों दोषियों के खिलाफ आरोप पथराव तक सीमित नहीं हैं। इनमें से एक आरोपी मुख्य साजिशकर्ता साबित हुआ है। यह वही अपराधी था जिसने गोधरा स्टेशन पर खड़ी साबरमती एक्सप्रेस की बोगी नंबर 6 में निर्दोष पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को जिंदा जलाने में सक्रिय तौर पर भूमिका निभाई थी।
याचिकाकर्ताओं के वकील हेगड़े ने दोषियों के बचाव में इस बात पर जोर दिया कि दोषियों ने हिरासत में 17 साल से अधिक समय बिता दिया है। उन्होंने तर्क दिया कि उनमें से दो के खिलाफ आरोप केवल पथराव से संबंधित थे, जबकि एक पर यात्रियों से आभूषण लूटने का भी आरोप था। जवाब में सालिसिटर मेहता ने इन दावों का खंडन किया।
घटना में दोषियों की भूमिका पर विचार करते हुए अदालत ने निर्णय लिया कि इस स्तर पर उन्हें जमानत देना उचित नहीं होगा। हालाँकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय याचिकाकर्ताओं के दोषसिद्धि के खिलाफ अपील करने के अधिकार का उल्लंघन नहीं करेगा। पीठ ने यह भी कहा कि सजा के खिलाफ याचिका पर सुनवाई में देरी न हो, इसलिए उनकी याचिका समय पर सूचीबद्ध की जाएगी।
इससे पहले, 21 अप्रैल को, सुप्रीम कोर्ट ने इसी मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे आठ दोषियों को यह कहते हुए जमानत देदी थी कि वो 17-18 साल की लंबी जेल की सजा काट रहे हैं और दोष सिद्धि की अपील प्रक्रिया में और अधिक समय लग सकता है जिससे उन्हें अपने कानूनी अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है। । हालाँकि, अदालत ने उन चार व्यक्तियों को समान राहत देने से इनकार कर दिया, जिन्हें मामले के संबंध में मौत की सजा सुनाई गई थी।
हालांकि आठ दोषियों को जमानत देने का गुजरात सरकार ने विरोध किया था और घटना की गंभीरता को उजागर करते हुए कहा था कि जो लोग महिलाओं और बच्चों सहित 59 लोगों को जिंदा जला कर मारने की दुर्दांत घटना में शामिल हों, उन्हें जमानत नहीं दी जानी चाहिए।
इसके पूर्व भी 15 दिसंबर, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गोधरा ट्रेन जलाने के मामले में ही एक आरोपी को यह कहते हुए जमानत दे दी कि उसकी संलिप्तता कोच से पथराव करने तक ही सीमित थी।