Supreme Court
Supreme Court: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र निस्तारण के लिए देश भर के उच्च न्यायालयों को गुरुवार को विशेष निर्देश जारी किए हैं।
ये निर्देश, पिछले साल नवंबर में वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर द्वारा दायर की गई याचिका की सुनवाई के दौरान दिए। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि याचिका दायर करने के समय भारत के विभिन्न एमपी-एमएलए न्यायालयों में 5097 मामले लंबित थे। याचिका पर डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने सुनवाई की।
MP-MLA के खिलाफ मामलों को सुलझाने में देरी के कारण सांसदों को गंभीर आरोपों का सामना करने के बावजूद अपना कार्यकाल पूरा करने की अनुमति मिली है। यदि ये आरोप सही साबित होते हैं, तो सांसदों को पद संभालने से अयोग्य ठहराया जा सकता है और एक महत्वपूर्ण अवधि के लिए चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है। इसलिए ऐसे मामलों का शीघ्र निस्तारण जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों को सांसदों-विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों पर स्वत:संज्ञान लेकर मामले शुरू करने और उनकी प्रगति की निगरानी करने का आदेश दिया है।
हाईकोर्ट्स के मुख्य न्यायाधीशों को इस निगरानी के लिए विशेष पीठ गठित करने का भी निर्देश दिया गया है, जिसकी वे खुद अध्यक्षता करेंगे। इसके अतिरिक्त, उच्च न्यायालय इस संबंध में महाधिवक्ता या लोक अभियोजकों से सहायता ले सकते हैं।
अदालत ने एमपी-एमएलए अदालतों वाले जिलों के प्रधान जिला न्यायाधीशों (पीडीजे) को उच्च न्यायालयों को नियमित रिपोर्ट सौंपने और मौत की सजा वाले मामलों को प्राथमिकता देने का भी निर्देश दिया।
सुप्रीम कोर्ट, जन प्रतिनिधित्व (आरपी) अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जो दोषी राजनेताओं को जेल की सजा काटने के बाद छह साल तक किसी भी चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करता है। अदालत अब दोषी राजनेताओं को चुनाव मैदान में उतरने से रोकने के सवाल पर सुनवाई करेगी।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश एक नजर में
1- उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों को सांसदों या विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के त्वरित समाधान की निगरानी के लिए “सांसदों/विधायकों के लिए पुनः नामित न्यायालयों में” शीर्षक से एक स्वत: संज्ञान मामला शुरू करना चाहिए। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश या नामित पीठ द्वारा की जा सकती है।
2- मामलों की सुनवाई करने वाली विशेष पीठ नियमित सुनवाई करेगी और मामले के त्वरित समाधान के लिए आवश्यक आदेश जारी करेगी। वे महाधिवक्ता या अभियोजक से भी सहायता ले सकते हैं।
3- नामित अदालतों को गंभीरता के आधार पर मामलों को प्राथमिकता देनी चाहिए। सांसदों-विधायकों के लिए मृत्युदंड या आजीवन कारावास से जुड़े मामलों को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलेगी, इसके बाद पांच साल या उससे अधिक की सजा वाले मामले और फिर अन्य मामले होंगे। ट्रायल अदालतों को सुनवाई स्थगित करने की परंपरा पर रोक लगाने के प्रयास करने होंगे।
4- उच्च न्यायालय प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश को इन मामलों को नामित अदालतों को सौंपने और नियमित प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दे सकते हैं।
5- मुख्य न्यायाधीश लंबित स्थगन आदेश वाले मामलों को समीक्षा और उचित कार्रवाई के लिए विशेष पीठ के समक्ष ला सकते हैं, जिसमें समय पर सुनवाई शुरू करने के लिए यदि आवश्यक हो तो स्थगन आदेश को समाप्त करना भी शामिल है।
6- प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नामित अदालतों के पास कामकाज के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा और उचित प्रौद्योगिकी होनी चाहिए।
7- उच्च न्यायालयों को ऐसे मामलों के लिए वेबसाइट पर डेडिकेटेड सेक्शन बनाना चाहिए जो दाखिल करने के वर्ष, लंबित मामलों की संख्या और प्रत्येक मामले की कार्यवाही के चरण पर जिलेवार जानकारी प्रदान करे।
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