अधिमास की दूसरी एकादशी का व्रत रखने का फल अश्वमेघ यज्ञ के बराबर मिलता है। अधिकमास की दूसरी एकादशी कौन सी है और कब पड़ेगी और क्या है इसका शुभ मुहूर्त और पूजा विधि जानें यहां।
सनातन धर्म में एकादशी को मोक्षदायनी माना गया है। भगवान विष्णु को समर्पित एकादशी का व्रत रखने से जीवन में किए गए सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है साथ ही सुख–सौभाग्य का आशीर्वाद श्रीहरि देते हैं। वैसे तो एकादशी महीने में दो बार यानी कि शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में आती हैं। इस तरह से साल में 24 एकादशी का व्रत रखने का मौका श्रीहरि के भक्तों को मिलता है। लेकिन इस बार अधिक मास होने की वजह से दो एकादशी और बढ़ गई हैं, तो इस साल कुल मिलाकर 26 एकादशी व्रत रखने के लिए मिलेंगी। अधिकमास में पड़ने वाली एकादशी बहुत ही खास मानी जाती हैं।
इस महीने में आने वाली एकादशी को हरि के साथ हर की भी कृपा बरसती है। अधिकमास की एक एकादशी पहले ही निकल चुकी है अब दूसरी एकादशी आने वाली है।इस एकादशी का व्रत रखने का मौका 3 साल में एक बार ही मिलता है। धार्मिक मान्यता के मुताबिक मलमास की दूसरी एकादशी का व्रत रखने का फल अश्वमेघ यज्ञ के बराबर मिलता है। अधिकमास की दूसरी एकादशी कौन सी है और कब पड़ेगी और क्या है इसका शुभ मुहूर्त और पूजा विधि जानें यहां।
कब है परमा एकादशी?
अधिकमास की दूसरी एकादशी परमा एकादशी कहलाती है। इस एकादशी का व्रत 12 अगस्त, शनिवार को रखा जाएगा। यह एकादशी मलमास के कृष्ण पक्ष में आती है। एकादशी की तिखि एक दिन पहले यानी कि 11 अगस्त को सुबह 5 बजकर 6 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन यानी कि 12 अगस्त को सुबह 6 बजकर 31 मिनट पर इसका समापन होगा। लेकिन व्रत 12 अगस्त, शनिवार को ही रखा जाएगा और व्रत का पारण 13 अगस्त, रविवार को किया जाएगा।
परमा एकादशी का शुभ मुहूर्त
परमा एकादशी की पूजा का शुभ मुहूर्त 12 अगस्त को सुबह 7 बजकर 28 मिनट से सुबह 9 बजकर 7 मिनट कर रहेगा। इ, मुहूर्त में श्री हरि विष्णु की पूजा करना शुभफलदायक माना जा रहा है।वहीं व्रत के पारण का समय रविवार,13 अगस्त को सुबह 5 बजकर 49 मिनट से सुबह 8 बजकर 19 मिनट कर है। एकादशी का व्रत पारण के बिना पूरा नहीं माना जाता है इसीलिए इसका पारण भी शुभ मुहूर्त में ही किया जाना चाहिए।
परमा एकादशी की पूजा विधि
तीन साल में एक बार आने वाली परमा एकादशी का व्रत रखने के लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए और फिर घर की साफ–सफाई करके स्नान करना चाहिए। इसके बाद पूजा वाली जगह पर भगवान विष्णु ओऔर माता लक्ष्मी की प्रतिमा को किसी चौकी पर स्थापित कर व्रत रखने का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु को चंदन या हल्दी का तिलक लगाए और फल–फूल, मेवा, तुलसी, धूप, दीप आदि से उनकी विधिवत पूजा करनी चाहिए। भगवान विष्णु को भोग में केला चढ़ाना चाहिए लेकिन खुद केला नहीं खाना चाहिए।पूजा के बाद आरती कर भगवान श्रीहरि और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद लेना चाहिए और फिर पूरे दिन बिना पानी पिए निर्जला व्रत रखना चाहिए। शाम के समय भी आरती करनी चाहिए इसके बाद अगले दिन द्वादशी को दान–पुण्य कर व्रत का पारण करना चाहिए।
परमा एकादशी का महत्व
एकादशी का व्रत सबसे कठिन व्रत में से एक माना जाता है। परमा एकादशी तीन साल में एक बार आती है इसीलिए इस व्रत का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस व्रतको रखने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। की लोग इस व्रत को निर्जला रखते हैं। लेकिन अगर निर्जला व्रत रख पाना संभव नहीं हो तो एक समय फलाहार और पानी लिया जा सकता है। परमा एकादशी का व्रत रखने से दुख और दरिद्रता दूर होती हैसाथ ही सुख–सौभाग्य बढ़ता है। इस व्रत को रखने और कथा सुनने का फल 100 यज्ञों के बराबर मिलता है।
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