करीब 10-15 साल बाद, उनके पिता को किसी ने बताया कि उसने उत्तर प्रदेश के फ रुखाबाद जिले के नीब करोरी गांव (जिसका नाम बिगडक़र ‘नीम करोली’ हो गया) में एक साधु को देखा है जिसकी शक्ल उनके बेटे की शक्ल से मिलती है।
नीम करोली बाबा – यह नाम उनके विदेशी भक्तों में ज्यादा लोकप्रिय है। 60 और 70 के दशक में भारत आने वाले बहुत से अमेरिकियों के गुरु के रूप में वह ज्यादा जाने जाते हैं। ग्यारह वर्ष की उम्र में उनकी शादी एक संपन्न ब्राह्मण परिवार की लडक़ी से कर दी गई। लेकिन महाराजजी ने अपनी शादी के तुरंत बाद घर छोड़ दिया और गुजरात चले गए। करीब 10-15 साल बाद, उनके पिता को किसी ने बताया कि उसने उत्तर प्रदेश के फ रुखाबाद जिले के नीब करोरी गांव (जिसका नाम बिगडक़र ‘नीम करोली’ हो गया) में एक साधु को देखा है जिसकी शक्ल उनके बेटे की शक्ल से मिलती है।
जानते हैं सद्गुरु ने नीम करोली बाबा के बारे में क्या कहा है…
नीम करोली बाबा की विदेशी शिष्य रामदास से मुलाकात
‘‘रामदास अमेरीका से भारत आया। वह इतना बड़ा नशेबाज था कि एक दिन में दो, तीन एलएसडी निगल सकता था। एक दिन वह नीम करोली बाबा के पास गया, जो असाधारण काबिलियत के धनी एक अद्भुत गुरु थे। वे दिव्यदर्शी, एक बहुत काबिल तांत्रिक, एक असाधारण व्यक्ति और हनुमान के भक्त थे।
तो वह नीम करोली बाबा के पास आया और बोला, ‘मेरे पास एक असली माल है जो स्वर्ग का आनंद देता है। आप इसे खाएं तो ज्ञान के सारे दरवाजे खुल जाते हैं। क्या आप इसके बारे में कुछ जानते हैं?’ नीम करोली बाबा ने पूछा, ‘यह क्या है? मुझे बताओ।’
उन्होंने गोलियों को मुंह में डाला और निगल लिया। फि र वहां बैठकर अपना काम करते रहे। रामदास वहां इस उम्मीद में बैठा रहा कि यह आदमी अभी मरने वाला है।
उसने उन्हें कई सारी गोलियां दीं। वह बोले, ‘तुम्हारे पास कितनी हैं? मुझे दिखाओ।’ उसके पास बहुत सारी गोलियां थीं, जो उसके लिए कई दिनों या महीनों चलती। वह बोले, ‘लाओ मुझे दो।’ उसने उन्हें मुट्ठी भर एलएसडी दे दीं। उन्होंने गोलियों को मुंह में डाला और निगल लिया। फि र वहां बैठकर अपना काम करते रहे। रामदास वहां इस उम्मीद में बैठा रहा कि यह आदमी अभी मरने वाला है। मगर नीम करोली बाबा पर एलएसडी का कोई असर नहीं दिख रहा था। वह काम करते रहे, उनका मकसद बस रामदास को यह बताना था कि तुम एक फालतू सी चीज पर अपना जीवन बर्बाद कर रहे हो। यह चीज तुम्हारे किसी काम नहीं आने वाली।’’ – सद्गुरु
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नीम करोली बाबा के शिष्य रामदास
ऊपर चर्चित आदमी ‘रामदास’ के बारे में पुस्तक ‘ मिडनाइट विद द मिस्टिक’ में चर्चा की गई है। इस पुस्तक की लेखिका शेरिल सिमोंन कई सारी कंपनियों की सी. ई. ओ. हैं, और पूरे जीवन एक आध्यात्मिक खोजी रही हैं। 30 साल की खोज के बाद आखिरकार वे सद्गुरु से मिलीं और उन्हें सद्गुरु के साथ बैठने और अपने ज्वलंत प्रश्न पूछने का मौका मिला। पेश है इस पुस्तक के कुछ अंश।
वे बोले कि कभी-कभी जब किसी की खोज बड़ी तीव्र और गहरी होती है, तो उनके माध्यम से कुछ घटित होने लगता है। उन्होंने कहा कि जब मैं अपने वास्तविक गुरु से मिलूंगी, तब मुझे पता चल जायेगा।
‘जब मैं उत्तरी कैलिफ़ोर्निया में रामदास से उनके घर पर मिलने गयी और मैंने उनसे पूछा कि क्या वे मेरे गुरु हैं, तो उन्होंने कहा नहीं, वे गुरु नहीं हैं। वे बोले कि कभी-कभी जब किसी की खोज बड़ी तीव्र और गहरी होती है, तो उनके माध्यम से कुछ घटित होने लगता है। उन्होंने कहा कि जब मैं अपने वास्तविक गुरु से मिलूंगी, तब मुझे पता चल जायेगा। मैंने सोचा कि मेरी आध्यात्मिक यात्रा शुरू हो कर गति पकड़ चुकी है और मेरे साथ कुछ बहुत बड़ा घटित होने वाला है। यह सब तीस साल से भी पहले हुआ था।
अगस्त की उस शाम को जब हम अपने द्वीप पर आग तापने बैठे थे, तब मैंने सद्गुरु को अपने रामदास वाली कहानी सुनायी। ‘जब मैंने पहली बार आपको देखा,’ मैंने सद्गुरु से कहा, ‘आप मुझे वही स्वरूप या सत्व लगे जिसको मैंने इतने समय पहले रामदास के रूप में देखा था। सब-कुछ इतना जाना-पहचाना-सा था और मैं अचरज में डूबी हुई थी। मैं जान गयी थी कि अब मेरे लिए यह स्वांग समाप्त होने वाला है। जो वास्तविक है वह अंतत: प्रकट हो चुका था।’
रामदास बस नीम करोली बाबा के साथ रहे
सद्गुरु ने तब उस घटना की व्याख्या करना शुरू किया। ‘जैसा कि आप जानती हैं, रामदास नीम करोली बाबा के पास गये,’ उन्होंने कहा। ‘नीम करोली बाबा प्रचंड क्षमताओं वाले महापुरुष थे। वे एक दिव्यदर्शी थे, जिन पर शिक्षा का बोझ नहीं था। मुझे अपनी बात आपकी भाषा में कहनी होगी और ऐसी बातें बतानी होंगी जिनको आप अपनी संवेदनशीलता से समझ पायें।
‘शेरिल, देखिए मैं आपके साथ कितनी सावधानी बरत रहा हूं? नीम करोली बाबा को इस सबकी परवाह नहीं थी।
मुझे पता नहीं रामदास ने यह बात किसी निश्चित क्षण में केवल आप से कही या यह बात उन्होंने सबसे कही, लेकिन किसी भी रूप में रामदास आपके गुरु नहीं हो सकते।
अशिक्षित होने पर यह आजादी होती है। इसलिए रामदास के प्रति उनके प्रेम या फिर रामदास की अपनी निष्ठा और ग्रहण करने की उनकी सदिच्छा के कारण एक विशेष आयाम ने उन पर कृपादृष्टि की।
‘मुझे पता नहीं रामदास ने यह बात किसी निश्चित क्षण में केवल आप से कही या यह बात उन्होंने सबसे कही, लेकिन किसी भी रूप में रामदास आपके गुरु नहीं हो सकते। हां, वे आपको जीवन का एक और आयाम दिखाने वाला झरोखा हो सकते हैं, और उन्होंने बिलकुल यही किया। रामदास अपनी क्षमताओं से रामदास नहीं बने, वे अपनी साधना से रामदास नहीं बने, रामदास केवल इसलिए रामदास बन पाये क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में एक उपयुक्त कार्य किया- वे नीम करोली बाबा जैसे महापुरुष के सान्निध्य में रहे। उनमें उनके साथ बैठे रहने की समझ थी, जिसके कारण वे उस दिव्यपुरुष के एक खास आयाम को अपने में समाहित कर पाये। नीम करोली बाबा अनेक झरोखे खोलना चाहते थे, पर उन्होंने बस एक झरोखा खोल कर उसको अमरीका भेज दिया।’’
नीम करोली बाबा के शब्द
बाबा ने एक भारतीय लडक़ी से चार बार पूछा – ‘‘तुम्हें आनंद पसंद है या दु:ख?’’ हर बार लडक़ी ने जवाब दिया – ‘‘मैंने कभी आनंद महसूस ही नहीं किया, महाराजजी, बस दु:ख ही महसूस किया है।’’ आखिर में महाराजजी ने बोला – ‘‘मुझे दु:ख पसंद है। यह मुझे भगवान के पास ले जाता है।’’
भारत में, योग लोगों की रगों में बहता है। – नीम करोली बाबा
गर आप अपनी मौत के समय एक आम की इच्छा करेंगे, तो आप एक कीड़े के रूप में जन्म लेंगे। अगर आप अगली सांस की भी इच्छा रखेंगे, तो आप दुबारा जन्म लेंगे। – नीम करोली बाबा
(isha.sadhguru.org से साभार)
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