India नहीं, भारत है यह देश, संघे शक्ति कलियुगे
संघे शक्ति कलयुगे… कलियुग में संगठन ही शक्ति है…! यह हम नहीं, हमारे शास्त्र कहते हैं।
‘त्रेतायां मन्त्र शक्तिश्च, ज्ञान शक्ति कृते युगे, द्वापरे युद्ध शक्ति, संघे शक्ति कलियुगे!’
त्रेता युग में मंत्र, सतयुग में ज्ञान, द्वापर में युद्ध, और कलियुग में संगठन में ही शक्ति होगी!
कलियुग यानी अंत की शुरुआत… ‘कल्कि का आगमन…’ किसी उद्घोष की आवश्यकता नहीं… छोटी छोटी शुरुआत ही बड़े बवंडर लाएगी, ऐसे तूफान जो भारत ही नहीं, बल्कि वृहत कालखंड में, समूची धरती से मजा-हब वाली अंग्रेजी, जोशुआ, जेहादी गंदगी का नामोनिशान मिटा देंगे।
आज से इंडिया खल्लास *वंदेभारत कहेंगे। बस यहीं तक… आगे बात खत्म!
twitter पर #NationFirst @Dharmartham की #BharatChallenge मुहिम
अभी शुरू हुए कुल एक सप्ताह ही हुआ था कि सनातन धर्म की सबसे बड़ी सामाजिक, वैचारिक संस्था के शीर्ष पर विद्यमान प्रमुख विचारकों में से एक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने उठा लिया #BharatChallenge!
विश्व भर में फैले संघ कार्यकर्ताओं से निवेदन किया, आज से इंडिया नहीं ‘भारत’ बोलें, भारत लिखें, भारत पढ़ें!
वास्तव में ‘इंडिया’ गुलामी का प्रतीक है, भारत है, नए भारत की वैचारिक स्वतंत्रता का वो परचम। जो स्वच्छ अखंड भारत की एक छोटी सी लौ को एक ज्वाला बनाएगा…!
भारतीय जनता की संगठित एकता के विश्वास का, जातिमुक्त, परिवारवाद और गुलामी से मुक्त एक नया भारत।
‘सुदर्शन जी विद्वान थे, सही कहते थे, संघ कार्य करने हेतु, संगठन में पद, पहचान की आवश्यकता नहीं, संघ कार्य कहीं से भी किया जा सकता है, क्योंकि वो अंत्योदय हेतु है, धर्म के उत्थान हेतु!’