बड़ी ही चतुराई से कुछ राजनेता, ईश्वर अल्ला जोड़ने वाले गांधी को अपने लिए इस्तेमाल करने में सनातन धर्म का अपमान करने से नहीं चूक रहे!?
आजादी के तुरंत बाद 70 वर्षों तक जो कांग्रेस को लगा, अब उन्हें भी यही लगता है, कि हिंदुओं को तो कोई फर्क नहीं पड़ता, कम से कम मुसलमानों को सेट करने की कोशिश करते रहो, ईसाई वोट भी बटोरो, हिंदू तो वोट करते ही रहेंगे चाहे रानी लक्ष्मीबाई को मरवाने वाले अंग्रेजी जासूस साईं से राम को जोड़ दो, चाहे शिव से, चाहे आखिरी हिंदू राजा पृथ्वीराज चौहान के हत्यारे हिंजड़े ख्वाजा को पूजो, चाहे वैटिकन जाकर पोप को गले लगाओ, हिंदू वोट करता रहेगा!?
बस राम और शिव के मंदिर बनाते रहो, दस पंद्रह साल में मंदिर तोड़ने वाली कौम धीरे धीरे अपनी जनसंख्या बढ़ाती रहेगी, और फिर एक दिन, धीरे से जैसे हिंदुत्व का एजेंडा हटाकर, सबका विश्वास जोड़ा है, वैसे ही जरूरत पड़ी तो भारतीय ईसाई मुस्लिम पार्टी नाम रख देंगे, समय के साथ जिसके ज्यादा वोट होंगे, उसी का गुणगान करेंगे, जीत अपनी ही होगी!?
खैर अपने राम को क्या तुम कुछ भी कहो हम वही कहेंगे जो सत्य है, शिव है, सनातन है, क्योंकि आपकी मजबूरी होगा गांधी को ढोना, हम इसका सच जानते हैं, और ये भी… की अहिंसा परमो धर्म भी आधा इस्तेमाल करने वाला बकरी बाज गांधी, कितना हिंसक था!?
इसलिए अहिंसा परमो धर्म, धर्म हिंसा तथैव च पूरा पढ़ेंगे, और पूरा ही पढ़ाएंगे इसका अर्थ है अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है, किन्तु धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उससे भी श्रेष्ठ है!
साथ ही आज रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम भजन के साथ की गई गांधी पंती की भी पोल खोलने का समय आ गया है…
आपको जानकर हैरानी होगी कि इसमें “अल्लाह” शब्द कांग्रेस के कर्मचंद गांधी ने अपनी ओर गंगा तुलसी शालिग्राम को हटाकर बड़ी धूर्तता से अपनी मजा हब कौम के इसमें अल्ला को जोड़ दिया, वही सबका साथ वाला फंडा है ये भी!?
अंत में मिला क्या ठुल्लू, भारत के तीन टुकड़े कर दिए सीकड़ी मुल्ले जिन्ना और अय्याश नेहरू ने इसी बंद कमरे में नंगे होकर, अपनी पोती की उम्र की मनुबेन जैसी दर्जनों के साथ, सच के प्रयोग करने वाले, समलिंगी गंदी के साथ मिलकर!?
इस भजन के असली जनक थे “पंडित लक्ष्मणाचार्य”। मूल भजन “श्री नमः रामनायनम” नामक हिन्दू ग्रंथ से लिया गया है जो इस प्रकार है:
रघुपति राघव राजाराम।
पतित पावन सीताराम।
सुंदर विग्रह मेघाश्याम,
गंगा तुलसी शालीग्राम।
भद्रगिरीश्वर सीताराम,
भगत-जनप्रिय सीताराम।
जानकीरमणा सीताराम,
जय जय राघव सीताराम।
सन १९४८ में एक फिल्म आयी थी – “श्री राम भक्त हनुमान”
उस फिल्म में भी इस भजन का मूल स्वरुप उपलब्ध है, और उस भजन में कहीं भी एक बार भी “अल्लाह” शब्द नहीं आया है (किसी भी तरह ये आ भी नहीं सकता था)
इसे आप ऊपर के वीडियो में देख सकते हैं।
दुख की बात ये है कि, बड़े-बड़े पंडित तथा वक्ता भी इस भजन को गलत गाते हैं, यहां तक कि ऐसे मंदिरो में भी, जहां मटन खोर साईं बाज की मूर्ति लगीं हुई है, इसलिए तो कहते हैं, अपने धर्म से विमुख, जनता का यही हाल रहा तो, साईं, पीर, फकीर, ख्वाजा, मजार, दरगाह पूजती रही, तो वो दिन दूर नहीं, जब ये इंडिया दैट इस G फॉर गिंडिया रख देंगे!?
सावरकर को छोड़कर गांधी की लूंगी पकड़े नेता शायद भूल गए हैं, इसलिए याद करवाना होगा, जिस सावरकर को आगे कर सत्ता शीर्ष पर पहुंचे उन्ही सावरकर ने कहा था, यदि हिंदुओं को, भारत को बचाना है, तो राजनीति का हिंदूकरण और हिंदुओं का सैनिकीकरण करना आवश्यक है!
खैर भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, स्वामी श्रद्धानंद, लाला लाजपत राय, नेताजी सुभाष, और चंद्रशेखर की हत्या करवाने वाले जोशुआ जेहादी दलालों का पाप बड़ी आसानी से आप भूल सकते हैं, हम नहीं… स्वप्न में भी नहीं, किसी भी हिन्दू धर्मग्रंथ, भजन, देवी देवता के साथ गंदगी (जो पूरी दुनिया का सबसे बड़ा गंद है आज) उसको जोड़ने की छेड़छाड़, हमें स्वीकृत नहीं है, और हम सबको इसके प्रति जागरूक होने की आवश्यकता है!?
बाकी सनातन धर्म के साथ छेड़खानी करने वालों के साथ क्या करना ये बताने की ज़रूरत नहीं है, जो मन करे वो करो, पर बहिष्कार जरूर करना, चाहे कोई भी हो, राजा, मंत्री या फिर संतरी, जो हमारे राम का नहीं, वो हमारे किसी भी काम का नहीं… कोई भी क्यों न हो!
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