संसदीय राजनीति: लोक सभा में 8 अगस्त से शुरू होगी  ‘अविश्वास प्रस्ताव’ पर बहस: जानिए क्या है सांसद के नियम

देश की संसद में यह हफ्ता काफी हंगामेदार रहने वाला है। इस हफ्ते लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर 8 अगस्त से 10 अगस्त तक बहस हो सकती है। विपक्ष की ओर से कांग्रेस सदस्य गौरव गोगोई ने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है, जिसे स्पीकर ने बहस के लिए मंजूरी दे दी है। प्रस्ताव पर सदन में चर्चा होगी और फिर वोटिंग भी करानी होगी। मतदान का नतीजा सबको पता है। चूंकि विपक्षी दल मणिपुर हिंसा मामले पर प्रधानमंत्री मोदी का वक्तव्य सदन में हासिल नहीं कर सके इसलिए उन्होंने यह चाल चली है कि भले ही अविश्वास प्रस्ताव गिर जाए लेकिन प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को सदन आना होगा और वक्तव्य भी देना होगा।

मौजूदा लोकसभा में सत्ताधारी दल बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के पास 333 सांसद हैं जबकि पूरे विपक्ष के पास सिर्फ 142 सांसद हैं। विपक्ष को भी पता है कि अविश्वास प्रस्ताव गिरना तय है।
फिर भी वे अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए हैं। आईए जानते हैं कि अविश्वास प्रस्ताव किया है और कैसे लाया जाता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 75 के तहत, प्रधान मंत्री सहित केंद्रीय मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति जवाबदेह है। सरकार तभी तक कार्य कर सकती है जब तक उसे सदन में बहुमत का समर्थन प्राप्त है। यदि सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो प्रधान मंत्री सहित मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना होता है।
अविश्वास प्रस्ताव पेश करने की प्रक्रिया लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमों के नियम 198(1) से 198(5) द्वारा शासित होती है जो प्रक्रिया इस प्रकार है:
– अविश्वास प्रस्ताव लाने के इच्छुक विपक्षी दल के सदस्यों को लोकसभा अध्यक्ष (नियम 198(1)(ए)) से अनुमति लेनी होगी।
– प्रस्ताव की लिखित सूचना सुबह 10 बजे तक लोकसभा महासचिव को देनी होगी। यदि इस समय के बाद नोटिस प्राप्त होता है, तो इसे अगले दिन प्राप्त सूचना माना जाता है (नियम 198(1)(बी))।
– नियम 198(2) कहता है कि स्पीकर द्वारा प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन होना चाहिए।
-नियम 198(3) के मुताबिक एक बार अनुमति मिल जाने के बाद, अध्यक्ष प्रस्ताव पर चर्चा के लिए एक तारीख निर्धारित करते हैं।
– नियम 198(4) के तहत चर्चा के अंतिम दिन सदन में वोटिंग होती है और मतगणना के बाद और अध्यक्ष निर्णय की घोषणा करता करता है प्रस्ताव का परिणाम सत्ता पक्ष के साथ रहा या विपक्ष के साथ।
– अगर अविश्वास प्रस्ताव में सदन में मौजूद आधे से ज्यादा सदस्य सरकार के पक्ष में वोट करते हैं तो प्रस्ताव गिर जाता है और सरकार निर्बाध चलती रहती है।
– यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अविश्वास प्रस्ताव को किसी विशिष्ट कारण पर आधारित होने की आवश्यकता नहीं है, और नोटिस में उल्लिखित कारणों को प्रस्ताव का हिस्सा नहीं माना जाता है।
अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने के बाद लोकसभा में विधायी कार्य के संबंध में, भारतीय संविधान में ऐसा कोई विशेष प्रावधान नहीं है जो अध्यक्ष को विधायी कार्य रोकने का आदेश देता हो। यह सत्तारूढ़ दल और लोकसभा के विवेक पर निर्भर करता है कि ऐसे प्रस्ताव के दौरान विधायी कार्य किया जाए या नहीं।

‘भारत का संविधान विधायी कार्य को नहीं रोकता, भले ही अविश्वास प्रस्ताव लाया जाए’

लोकसभा में सत्ता पक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है और लाया जाता रहा है लेकिन ये भी सच है कि भारत के संविधान में ‘अविश्वास प्रस्ताव’ जैसे किसी शब्द का जिक्र ही नहीं है। हालाँकि, अनुच्छेद 118 के तहत, सदन अपने संचालन की प्रक्रिया स्वयं तय कर सकता है। सदन संचालन के नियम 198 के उप-नियम 1 से 5 तक यह प्रावधान है कि कोई भी सदस्य सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस लोकसभा अध्यक्ष को दे सकता है। इसी तरह का प्रस्ताव कांग्रेस मौजूदा सत्ता पक्ष के खिलाफ 26 जुलाई को ला चुकी है। आइए विस्तार से जानते हैं कि अविश्वास प्रस्ताव क्या है, इसे कैसे लाया जाता है और 26 जुलाई से पहले इसे कितनी बार लाया गया। यह जानना भी जरूरी है कि जब लोकसभा में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है तो लोकसभा में विधायी कामकाज कैसे चल रहा है। दरअसल, भारतीय संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने के बाद लोकसभा अध्यक्ष को विधायी कार्य रोकने का निर्देश दे। यह सत्ता पक्ष और लोकसभा अध्यक्ष के विवेक पर है कि लोकसभा में विधायी कार्य होना चाहिए या नहीं। मौजूदा लोकसभा में सत्ता पक्ष के पास 333 सांसद हैं जबकि पूरे विपक्ष के पास सिर्फ 142 सांसद हैं। विपक्ष को भी पता है कि चर्चा के बाद अविश्वास प्रस्ताव गिरना तय है। सत्ता पक्ष की जीत निश्चित है। विपक्ष का मकसद अविश्वास प्रस्ताव के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सदन में उपस्थित रहने के लिए मजबूर करना और विपक्षी दलों द्वारा उठाए गए मुद्दों पर जवाब हासिल करना है।
भारतीय लोक सभा में अविश्वास प्रस्ताव का इतिहास

26 जुलाई (वर्तमान तारीख से पहले) तक भारतीय संसद में 26 से अधिक अविश्वास प्रस्ताव पेश किए जा चुके हैं। सबसे ज्यादा 15 अविश्वास प्रस्ताव इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार के विभिन्न कार्यकाल में लाए गए थे।
भारतीय संसद में पहली बार अगस्त 1963 को जे.बी. कृपलानी ने नेहरू सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। तब इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल 62 वोट पड़े थे और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार के खिलाफ 347 वोट पड़े थे। लाल बहादुर शास्त्री और नरसिम्हा राव की सरकार को तीन-तीन बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा। अब तक पहली बार सरकार 1978 में गिरी थी, जब तत्कालीन मोरारजी देसाई सरकार अविश्वास प्रस्ताव के कारण गिर गई थी। मोरर जी सरकार के विरुद्ध दो बार लाया गया। पहली बार में अविश्वास प्रस्ताव गिर गया था लेकिन दूसरी बार सरकार ही गिर गई।
इसी तरह 1979 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चरण सिंह ने अविश्वास प्रस्ताव पर आवश्यक बहुमत न जुटा पाने के कारण इस्तीफा दे दिया। इसके बाद 1989 में वी.पी. सिंह के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित होने के बाद राष्ट्रीय मोर्चा सरकार को इस्तीफा देना पड़ा।
1993 में कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार मामूली अंतर से अविश्वास प्रस्ताव पारित कराने में सफल रही थी। 1997 में एच.डी. अविश्वास प्रस्ताव में हार के बाद देवेगौड़ा की संयुक्त मोर्चा सरकार को इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद 1998 में संयुक्त मोर्चा के आई.के. गुजराल सरकार को भी अविश्वास प्रस्ताव हारने के बाद भी इस्तीफा देना पड़ा था।
एनडीए की ओर से अटल बिहारी वाजपेयी ने दो बार विश्वास मत हासिल करने की कोशिश की और दोनों बार असफल रहे। 1996 में केवल 13 दिन सरकार चलाने के बाद उन्होंने मतदान से पहले इस्तीफा दे दिया और 1998 में उनकी सरकार केवल एक वोट के अंतर से गिर गयी।
जुलाई 2009 में अमेरिका के साथ परमाणु समझौते के विरोध में यूपीए सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसे मामूली बहुमत से जीत लिया था।
सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का रिकॉर्ड सीपीआई (एम) सांसद ज्योतिर्मय बसु के नाम है। उन्होंने अपने चारों प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ रखे थे।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्ष में रहते हुए दो बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। पहला प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ था और दूसरा नरसिम्हा राव सरकार के खिलाफ।
जुलाई 2018 में पीएम मोदी को अपने पहले ही कार्यकाल में पहली बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा। अब दूसरे कार्यकाल में एक बार फिर नरेंद्र मोदी सरकार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने जा रही है।

Leave comment

Your email address will not be published. Required fields are marked with *.