बेचारा! एक अराजक ‘आला माफ-या’ वजीर-ए-आला और लोक-तंतर के हिमायती इंसाफ के हाकिम

(Disclaimer: This is an ostensible-fictional wirte up. Please Do not Relate this with any person or persons, place, incident and entity or thing.)

दृश्य-1-
खुश तो बहुत हो रहे होंगे आज मेरे हाकिम-ए-इंसाफ! गोया, वेस्टर्न वर्ल्ड ने तारीफों की चाशनी में डूबी कलम से दुनिया भर की मीडिया में सुर्खियां जो बना दिया। एक बेचारे अराजक आला माफिया वजीर-ए-आला को अमूरी जमानत देने का फलसफा जो सिर्फ आठ पन्ने काले करने से मिल गया वो जिंदगी भर ईमानदारी की स्याही से फैसला-दर-फैसला लिखने से मिल पाता क्या?

जनाब, कमर झुक जाती है, आंखों में झाईंया पड़ जाती हैं…और  नौकरी के आखिरी रोज ‘चीफ’ फुल बेंच का रस्मी इजलास बुलाकर रुखसत कर देते हैं। कोई लाइव लॉ, बार बेंच, लीगली स्पीकिंग जैसे कॉलम-दो कॉलम की खबर छाप दिया करते हैं। दीवार पर टंगे बोर्ड पर नाम लिख जाता है तारीख के साथ बस!

बहरहाल, मुंसिफी-ए-आला की बुलंद इमारत में अभी तो कई साल गुजारने हैं। कई और बड़े मुकाम कायम करने ख्वाहिश है। गरज ये कि तीसरी दफे शेर आया तो एनजेएसी नाफिस हो सकता है, किसी दूसरी शक्ल में! फिर मौका मिलेगा मील के पत्थर गाड़ने का या …? ये सवाल बहुत बड़ा है, बड़े से भी बड़ा है!

दिन ही कितने बचे हैं 4 जून के…। आला माफिया वजीर-ए-आला, सोर-ओस वाली टोली  का सबसे बड़ा हथियार है। चुनांचे. करना है सो कर गुजर 21 दिनों में। वरना, सोर-ओस भाई के सामने किस मुंह से जांएगे। ऑक्सफ-ओर्ड वर्सिटी में चांस मारना है? विदेशों में लेक्चर भी तो देने हैं?

फौलादी-मुंसिफ का खिताब हासिल करने की हसरत है भाई, इसे ‘वकार-ए-मुल्क’ का मुद्दा कैसे कह सकते हो? मुद्दा बनाने वाले मुनाफिकों को उधेड़ कर रख देंगे।

दृश्य-2-
अन्याय के मंदिर के उत्तुंग शिखर पर बैठे वे लोग, समय यात्री हैं। उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि 21 दिन में क्या कुछ किया जा सकता है। वो भविष्य दर्शा हैं। भूतकाल की घटनाएं भूल कर वो आगे बढ़ जाते हैं  ‘बीती ताही बिसारिये’ को अंगीकृत कर लेते है हैं। वो राजा भोज और कालीदास के संवाद के सूत्र  ‘गतम् न शोच्यते कृतं न मन्नः’ का अक्षरसह पालन करते हैं। गोकि, उनकी जुवान से निकला हर शब्द ब्रह्म वाक्य है। उनकी  दिमागी सोच परम पिता परमात्मा की मर्जी है।  वो, सोर-ओस के शिष्य हैं (आप कठपुतली भी कह सकते हैं)। डीप-स्टेट के एसेट्स हैं। इसलिए डीप स्टेट के बिगेस्ट एसेट को बचाने के लिए ‘होलिस्टिक और लिब्रेटेरियन व्यूज’ एडॉप्ट करते हैं और और खुद ही जस्टिफाइड भी करते हैं। डिस्क्रिशनरी पॉवर है। किसी को उंगली करने और उठाने का मौका क्यों दें। सियासी आपराध और आर्थिक भ्रष्टाचार को खत्म करने से ज्यादा, जर्मनी-अमेरिका और यूनाईटेड नेशंस की स्वंयप्रभु भारत लोकतंत्र में दखलंदाजी को किसी भी तरह जायज ठहराना जरूररी। चुनांचे ‘बिन मांगे बेल’ दी है। डिस्क्रिशनरी पॉवर है। यह जन्मसिद्ध-कर्मसिद्ध और मौकासिद्ध अधिकार है। तभी तो  ‘अराजक’, आला माफिया वजीर-ए-आला को जेल से बाहर निकालने के आदेश सीधे जेल के सुपरिंटेंडेट को भेज देते हैं। बाकी सब ठेंगे पर, ठेंगे पर भी क्यों, उससे भी नीचे, क्यों कि इंसाफ की अट्टालिका से नीचे जो भी है, सब कीड़े-मकौड़े हैं। आवाज निकाली तो नेस्तनाबूद कर देंगे। ‘रिप-अपार्ट’ कर देंगे। हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाना, माफी मांगना भी ‘मक्कारी’ है, ‘बहानेवाजी’ है।
दृश्य-3-
21 जनवरी 2014 से लेकर 29 जनवरी 2014 तक संसद भवन की ओर जाने वाले मार्गों को रोक कर, सड़क पर बैठे ‘अराजक’, आला-ए-माफिया वजीर-ए-आला की हरकत दो किलोमीटर दूर बैठे न्याय के देवताओं को दिखाई और सुनाई कैसे देती। क्योंकि एवान-ए-मुंसिफी की दीवारें ऊंची और मोटी हो चुकी हैं। गणतंत्र दिवस और सरकार को बंधक बनाने, अराजकता बरपाने, दुनिया भर में देश की बदनामी करने की घटना से न्याय का सर्वोच्च मंदिर शर्मसार कैसे हो सकता है। कोई मुकदमा लेकर गया वहां तक? अगर जाता भी क्या कर लेता  क्यों कि ये तो बेचारे ‘अराजक’, आला-ए-माफिया वजीर-ए-आला की बालहठ जो ठहर। सियासत में बच्चा था जी। बच्चे की हरकत देश की सबसे बड़ी मुंसिफी की नजर में अपराध कैसे हो सकता है। अच्छा यह बताओ कोई मुकदमा दर्ज हुआ। चिक कटी, रोजनामचा लिखा, तफ्तीश हुई, ताजिरात-ए-हिंद की कोई  दफा नाफिज हुई! कोई ट्रायल हुआ! कहते फिर रहे हो.. सबूत-गवाह चिल्ला रहे हैं, चिल्लाने दो। नॉइज पाल्युशन हैं सब। बकवास है सब। हम छोटी-मोटी बातों पर सुओ-मोटो नहीं लेते हैं।

एक और गणतंत्र दिवस आया। कई साहिबों का शाहीनबाग पर ऐतिहासिक संबोधन हुआ। ‘अराजक’, आला-ए-माफिया वजीर-ए-आला ने घर से बैठकर मजलूमों की आवाज को बुलंद किया। मौके पर जाते तो चेहरे से नकाब उतर जाता। चुनावी मौसम में वोट का सवाल था। रास्ता रोक कर बैठने, धरना-प्रदर्शन करने में संविधान की अवहेलना कैसी? हमने तो रेलभवन चौराहे पर सड़क रोक कर सरकार चलाई है। केंद्र सरकार को बंधक बनाने की कोशिश भी की तो फिर शाहीनबाग को रोक कर बैठना अपराध कैसे हो सकता है। सड़क रोक कर बैठने वाले मजलूम थे बेचारे, कुछ भटके हुए नौजवान भी।

याद है, उस दिन इधर अमेरिका का राष्ट्रपति दिल्ली में उतरा और उधर दोस्तों ने दिल्ली जला डाली, तमाम निर्दोषों को बेरहमी से कत्ल कर दिया, कई अनाथ बना दिए, घर से बेघर कर दिए।आला-ए-माफिया वजीर-ए-आला की इसमें क्या खता? लॉ एन ऑर्डर तो यूनियन ऑफ इंडिया के पास है। यह बात दीगर है कि, वजीर-ए-आला के कबीना मंत्री-संत्री-साथी-सभासद नामजद हुए, पकड़े भी गए, मगर उस बेचारे के खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज हुआ, चिक कटी, रोजनामचा लिखा, तफतीश हुई, ताजिरात-ए-हिंद की कोई दफा नाफिज हुई! कोई ट्रायल हुआ! कहते फिर रहे हो कि सबूत-गवाह चिल्ला रहे हैं, चिल्लाने दो, क्या फर्क पड़ता है।

एक और छ्ब्बीस जनवरी आई। इससे पहले दंगाईयों-बलवाईयों को मटन बिरयानी खिला-खिला कर मोटा तगड़ा किया गया ताकि वो पुलिस और सुरक्षा बलों से मुकाबला कर सकें। छब्बीस जनवरी की परेड मुकाम पर पहुंचती कि दिल्ली पर चारों ओर से धावा बोल दिया गया। लाल किले को घेर लिया गया। फिर ट्रैक्टरों से रौंदा गया। पुलिस और सुरक्षा बलों को लाठी-डंडो-तलवार और भालों से निशाना बनाया गया। लाल किले पर मुल्क के परचम से ऊपर दंगाईयों का परचम लहराया गया। लाल किले पर कब्जा और जीत का जश्न मनाया गया।

…बेचारा ‘अराजक’, आला-ए-माफिया वजीर-ए-आला क्या करता तो क्या करता…लॉ एन ऑर्डर तो यूनियन ऑफ इंडिया के हाथ में था। हुआ होगा मुकदमा किसी के खिलाफ दर्ज, उसके खिलाफ क्या हुआ? चिक कटी, रोजनामचा लिखा, ताजिरात-ए-हिंद की कोई दफा नाफिज हुई! कोई ट्रायल हुआ! तुम चीख रहे हो कि सबूत-गवाह चिल्ला रहे हैं, चिल्ला रहे हैं तो चिल्लाने दो।

दृश्य-4-
लिकर पॉलिसी बनाई, क्या आपने चलने दी, शीश महल बनाया आपने रोका, वक्फ घोटाला, पानी घोटाला, स्कूल घोटाला, मुहल्ला क्लीनक घोटाला, हाईवे घोटाला और तमाम कितने घोटाले हुए, हाँ होते रहे.. मगर उसमें बेचारे ‘अराजक’, आला-ए-माफिया वजीर-ए-आला क्या कसूर? वो तो सारे विभाग अपने मंत्री-संत्रियों में बांट चुका था, मतलब सभी के सभी मंत्रालय अपने गुर्गों के नाम कर दिए। रिश्वत, किकबैक, घूस ली, हां सीधे ली, अपने निजी एकाउंट में डाली क्या, कोई एंट्री हो तो दिखाओ, शराब का पैसा आया कुछ चुनाव में लगा दिया, कुछ ऐश-अय्याशी में उड़ा दिया। रिश्वत के बाकी पैसों से सैंकड़ों बेरोजगारों को पार्ट टाइम-ठैके पर रोजगार दिया। टीवी चैनलों को को विज्ञापन भी रिश्वत के पैसे से ही तो दिया जा रहा है, या फिर सोर-ओस भाई के खजाने से आ रहा है, मगर कोई एंट्री है? है तो दिखाओ!
पूरा मीडिया मैनेज किया है, गोदी मीडिया भी। बंबानी का चैनल हो या वजत शर्मा का, यहां तक-वहां तक, कल तक-आज तक, सब गुणगान कर रहे हैं।फुटेज की लैंथ और इमेज-दर-इमेज पेमेंट हो रहा है। अंतरिम जमानत भले ही 21 दिन की मिली है, मगर टीवी चैनलों और डिजिटल मीडिया पर जेल से निकलने की ऐसी कवरेज हुई, जैसे कोई इनक्लाबी जेल की जंजीरे तोड़ कर आया हो।
सोर-ओस की टोली और अपने साथी हाकिम-ए-इंसाफ का करम कि तिहाड़ के दरवाजे से ‘मुलजिम मुख्यमंत्री’ ने ऐसी दहाड़ लगाई कि ईडी और राउज एवेन्यू की दीवारें दरक गईं।बा-आवाज ए बुलंद नारे लगे, बेइजाजत रोड शो हुआ, कानून की धज्जियां उड़ीं और चुनाव आचार संहिता उन्मादी भीड़ की आड़ में मुंह छिपाती रही…बावजूद इसके, क्या किसी के खिलाफ चिक कटी, रोजनामचा लिखा, मुकदमा दर्ज हुआ, ताजिरात-ए-हिंद की कोई भी दफा नाफिज हुई! कोई ट्रायल हुआ! फिर कहते हैं कि सबूत-गवाह चिल्ला रहे हैं, चिल्ला रहे हैं तो चिल्लाने दो।

बेचारे ‘अराजक’, आला-ए-माफिया वजीर-ए-आला का क्या कसूर?
दृश्य -5-
लोक-तंतर बच गया? या शोक तंतर शुरु गया…?
4 जून के बाद क्या होगा, होना क्या है? हम जीते तो बल्ले-बल्ले और शेर होगा पिंजरे के भीतर।… अगर शेर जीता तो हम चले जाएंगे विपशयना करने।
हम सबने लोक तंतर बचाने की कोशिश तो की, हम कह देंगे.. अंध भक्त-गोदी मीडिया ने जिता दिया तो हम क्या करें! लोकतंतर खत्म हो गया जी, वोटों पर डाका डाला गया जी, डिक्टेटर के डर से हमारे वोटर घर में दुबके रहे जी, हमारे वोटर्स को वोट नहीं डालने दिया गया जी।

खैर, हमारे मुंसिफ-ए-आला अभी बैठे हैं और नीली सीडी वाले दिंघवी साहब हमारे वकील हैं, समझे। वो चीफ साहब के गुरु भाई भी हैं। गोकि अब्बा हुजूर यानि बड़े वाले दिंघवी साहब के असिस्टेंट रहे हैं ‘चीफ’, प्रैक्टिस के शुरुआती दिनों में… बस एक अर्जी ही तो लगानी है, विपशयना की इजाजत तो मिल ही जाएगी, इसके अलावा ब्लड प्रेशर, हाईपर टेंशन, ब्लड शुगर के पर्चे-वर्चे किस दिन काम आएंगे।

बेचारे ‘अराजक’, आला-ए-माफिया वजीर-ए-आला का क्या कसूर? क्या चिक कटी, रोजनामचा लिखा, मुकदमा दर्ज हुआ, ताजिरात-ए-हिंद की कोई भी दफा नाफिज हुई! कोई ट्रायल हुआ! कहते हैं कि सबूत-गवाह चिल्ला रहे हैं, चिल्ला रहे हैं तो चिल्लाते रहो।

बेचारे ‘अराजक’, आला माफिया वजीर-ए-आला के मुहाफिजों सुनो! लिकर स्केम में चार्जशीट हो चुकी है, और अब एनआईए ला रहा है एक और बड़ा तौहफा, मुंसिफ भी खुद की नजर मुजरिम होंगे…समझो, समय का खेल है। कालचक्र घूम रहा है।

ऐ! ‘अराजक’, आला-ए-माफिया वजीर-ए-आला, यह बता- बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएगी।

NewsWala

Recent Posts

Legendary Tabla Maestro Zakir Hussain Passes Away at 73

Renowned tabla maestro Zakir Hussain passed away last night in the United States at the…

4 days ago

Bangladesh: Chittagong Court accepts petition to expedite Chinmoy Das’s bail hearing

Bangladesh: Chittagong Court accepts petition to expedite Chinmoy Das’s bail hearing

1 week ago

Indian Grandmaster D. Gukesh: Youngest World Chess Champion

Indian chess prodigy Dommaraju Gukesh made history today by becoming the youngest World Chess Champion.

1 week ago

Bengaluru Techie Dies by Suicide, Alleges Wife’s Harassment

The suicide of a Bengaluru techie has triggered massive outrage across the country, sparking an…

1 week ago

Pro Kabaddi League: Gujarat Giants Clash with Jaipur Pink Panthers in Pune

In the Pro Kabaddi League, the Gujarat Giants will take on the Jaipur Pink Panthers…

1 week ago

UAE Envoy Proposes India-Pakistan Cricket Match Hosting

Abdulnasser Alshaali, has extended an offer to host the much-anticipated cricket match between India and…

2 weeks ago