जहां शील न हो वहां तप, सत्य, जप, ज्ञान, विद्या, कला सब व्यर्थ है। शील का अर्थ शुद्ध चरित्र। ध्यान से खुली दो आंख फिर तुम्हारा जो हलन -चलन है, गति है, तुम्हारे जीवन की जो विधि है, शैली है वो शील है। जो जीवन में अंध-अनुकरण करते आए हो, वो चरित्र है। जैसे पुरूष कैसा भी गलत हो, हमारे शास्त्रों में इसकी बड़ी प्रशंसा की गई है, कि अगर कोई पत्नी अपने पति को—बूढ़े, मरते, सड़ते, कुष्ठ रोग से गलते पति को भी—कंधे पर रख कर वेश्या के घर पहुंचा दे तो मरते पति ने इच्छा जाहिर की कि मुझे वेश्या के घर जाना है। हम कहते है: यह है चरित्र, देखो क्या चरित्र है। यह चरित्र नहीं है, सिर्फ गुलामी है, यह दासता है और कुछ भी नहीं।
चरित्र को लोगो ने अपने तरीके से परिभाषित किया है जो बड़ी अजीब बातें है। समाज इस बात को चरित्र मानतI है कि देखो भारतीय स्त्री सिगरेट और शराब नहीं पीती और पश्चिम की स्त्री सिगरेट और शराब पीती है। भारतीय स्त्रियां पश्चिम से आए फैशनों का अंधा अनुकरण कर रही है, अगर सिगरेट और शराब पीना बुरा है तो पुरूष का पीना भी उतना ही बुरा होना चाहिए। अगर पुरूष को अधिकार है सिगरेट और शराब पीने का तो स्त्री को भी क्यों न हो। कोई चीज बुरी हो तो सब के लिए है और अगर बुरी नहीं है तो किसी के लिए भी बुरी नहीं होनी चाहिए। आखिर स्त्री में हम क्यों भेद करे। क्या स्त्री के अलग मापदंड निर्धारित करें? पुरूष अगर लंगोट लगा कर नदी में नहाओ तो ठीक और अगर स्त्री लँगोटी बाँध कर नदी में नहाए तो चरित्रहीन हो गयी। ये दोहरे मापदंड क्यों?
लोग कहते है: ‘’इस देश की युवतियां पश्चिम से आए फैशनों का अंधानुकरण करके अपने चरित्र का सत्यानाश कर रही है। एक तो चरित्र है नहीं कुछ और पश्चिम में चरित्र पैदा हो रहा है। अगर इस देश की स्त्रियां भी पश्चिम की स्त्रियों की भांति पुरूष के साथ अपने को समकक्ष घोषित करें तो उनके जीवन में भी चरित्र पैदा होगा और आत्मा पैदा होगी। स्त्री और पुरूष को समान दृष्टिकोण से देखना चाइए मतलब बराबर का अधिकार का हक होना चाहिए। यह बात पुरूष तो हमेशा ही कहते रहे है, स्त्रियों में उनकी उत्सुकता नहीं है: स्त्रियां के साथ मिलते दहेज में उत्सुकता है।–स्त्री से किसको लेना देना है, पैसा, धन, प्रतिष्ठा।
हम बच्चों पर शादी थोप देते थे। लड़का कहे कि मैं लड़की को देखना चाहता हूं, वह ठीक, यह उसका हक है। लेकिन लड़की कहे मैं भी लड़के को देखना चाहती हूं, लड़की कहे कि मैं लड़के के साथ दो महीने रहना चाहती हूं क्योंकि जिस आदमी के साथ जिंदगी भर रहना है वो साथ रहने योग्य है भी कि नहीं। तो हो गया चरित्र का ह्रास। पतन हो गया और इसको तुम चरित्र कहते हो कि जिससे पहचान नहीं, संबंध नहीं, कोई पूर्व परिचय नहीं। इसके साथ जिंदगी भर साथ रहने का निर्णय लेना। यह चरित्र है तो फिर अज्ञान क्या होगा? फिर मूढ़ता क्या होगी?
दुनिया में स्वतंत्रता और लोकतंत्र की हवा पैदा हुई है। स्त्रियों ने उदधोषणा की है समानता की तो कुछ पुरूषों और स्त्रियों की छाती पर सांप लोट रहा है। स्त्रियों की गुलामी इतनी गहरी हो गई है। कि उनको पता ही नहीं रहा कि जिसको वे चरित्र, सती-सावित्री और क्या–क्या नहीं मानती रही है, वे सब पुरूषों के द्वारा थोपे गए जबरदस्ती के विचार थे। जीवन में सिर्फ आनंद, उत्सव होना चाहिए। इसे क्यों इतना बोझिल, भारी बनाने की चेष्टा की गई है? मैं ये नहीं कहता हूं कि अपनी चेतना के विपरीत कुछ करो। किसी व्यक्ति को एक ही व्यक्ति के साथ जीवन-भर प्रेम करने का भाव है—सुंदर है, अति सुंदर है। लेकिन यह भाव होना चाहिए आंतरिक। यह ऊपर से थोपा हुआ नहीं। मजबूरी में नहीं। इसी प्रकार देश में कानून भी सभी दृष्टि से बराबर होना चाइए। कानून का चरित्र शुद्ध और बराबर होना चाहिए।
बी. एस. राजेश
Cricket: आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी क्रिकेट प्रतियोगिता में आज दुबई इंटरनेशनल स्टेडियम में भारत का मुकाबला…
दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी ने विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की करारी हार के…
भारतीय जनता पार्टी ने आम आदमी पार्टी को हराकर 27 साल बाद दिल्ली में सत्ता…
The Nation is celebrating the 76th Republic Day today. President Droupadi Murmu led the Nation…
Full Dress Rehearsal for Republic Day Parade to Take Place Tomorrow