Israel Hamas War: फ़िलिस्तीन में पाकिस्तानी एजेंडा टाँय-टांय फिस्स हो गया है। पाकिस्तान के फ़ौजी हुक्कामों ने इसरायल-Hamas जंग के बहाने कश्मीर का मुद्दा उठाने के लिए देवबंदी फिरके के कट्टरपंथी मौलाना फ़ज़ल उर रहमान को हमास के नेताओं के पास भेजा था।
पाकिस्तान को लग रहा था कि अब तो शिया मुल्क ईरान का साथ भी उसको मिल जाएगा क्यों कि ईरान इसरायल के ख़िलाफ़ है और भारत खुल कर इसरायल का साथ दे रहा है, ऐसे में पाकिस्तान एक तीर से तीन शिकार एक साथ कर लेगा। मगर उसका मंसूबा ख़ुद ईरान ने ही नाकाम कर दिया है।
जिस समय फ़ज़ल उर रहमान हमास के नेताओं की जूतियाँ चाट रहे थे उसी समय ईरान के राष्ट्रपति रईसी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इसरायल-हमास जंग रुकवाने की गुहार लगा रहे थे। ध्यान रहे, भारत जहां खुलकर इसरायल का साथ दे रहा है वहीं फ़िलिस्तीन के युद्ध-प्रभावितों के लिए राहत सामग्री भी भेज रहा है।
इसलिए पाकिस्तान की चाटुकारिता के एवज़ में Hamas या फ़िलिस्तीन के नेता ज़ुबानी गोले भले ही दागते रहें लेकिन वो सिद्धांततः भारत के ख़िलाफ़ नहीं जा सकते।
इसरायल-Hamas जंग को रुकवाने में भारत की भूमिका इसी बात से समझी जा सकती है कि ख़ुद अमेरिका चाहता है कि भारत कोई बीच का रास्ता निकाले जो दोनों पक्षों के लिए मान्य हो। इसरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू इस सिलसिले में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से कई बार फ़ोन पर बातचीत भी कर चुके हैं।
इन हालातों में अब पाकिस्तान की हालत धोबी के कुत्ते जैसी हो गयी है। वो न घर का है और न घाट का। हमास के नेताओं की चाटुकारिता कर जहां अमेरिका को और नाराज़ कर दिया है तो वहीं कश्मीर पर नया मोर्चा खोलने और जिहाद के नाम पर मुस्लिम देशों से चंदा वसूलने का धंधा चौपट हो गया है।
यहाँ एक सवाल लोगों के दिमाग में कुलबुला रहा होगा कि भारत इसरायल का साथ देने के बावजूद गाजा के लोगों को राहत सामग्री क्यों भेज रहा है। भारत दोनों नावों पर एक साथ पैर कैसे रख कर चल रहा है। इसका रहस्य सिर्फ़ इतना सा है कि जब इसरायल जंग में घायलों का इलाज अपने अस्पतालों में कर सकता है।
गाजा युद्ध में बेघर हुए लोगों को घर दे सकता है। उनकी रोज़ी-रोजगार जुगाड़ कर सकता है तो फिर भारत गाजा में राहत भेजकर इसरायल के ख़िलाफ़ नहीं, बल्कि इसरायल की पक्ष में ही काम कर रहा है। हाँ, भारत और इसरायल दोनों आतंक के ख़िलाफ़ हैं। भारत ने 7 अक्टूबर को इसरायल पर हमास के आतंकी हमले की सबसे पहले भर्त्सना की मगर राहत सामग्री भी सबसे पहले भेजी। वहीं बेंजामिन नेतन्याहू ने भी बयान दिया कि वो हमास रहित गाजा के लोगों के पुनर्वास जी-जान एक कर देंगे। वैसे भी गाजा के पास अपना तो कुछ है नहीं। खाना-पानी, बिजली, सड़क-अस्पताल सब कुछ इसरायल ही तो देता है।
एक बात और, यहूदियों के देश इसरायल में 20 लाख से ज़्यादा मुसलमान भी रहते हैं। गाजा में मिट्टी में मिलाने के बावजूद इसरायल की पुलिस-फ़ौज या सिविल अथॉरिटी ने उन मुसलमानों के ख़िलाफ़ एक लफ़्ज़ तक नहीं निकाला है। उन पर किसी तरह की बंदिश नहीं है। यहूदियों के देश में वो सभी मुसलमान ठीक वैसे ही रह रहे हैं जैसे यहूदी रह रहे हैं। यही कारण है कि सऊदी अरब और यूएई ने अभी तक इज़रायल के ख़िलाफ़ कुछ नहीं किया है।
तुर्की जैसे देश जो हमास के आतंकी हमलों को आज़ादी की जंग बता रहे हैं ये वही देश हैं जिनके भीतर ख़ुद अस्थिरता का ज्वालामुखी भीतर ही भीतर धधक रहा है और किसी भी वक़्त फट सकता है। ईरान भी जानता है कि इसरायल आतंकियों के ख़िलाफ़ है मुसलमानों के ख़िलाफ़ नहीं। उसके विरोध का कारण तो अमेरिका है। वैसे भी अगर ईरान सीधे जंग में कूदा तो वो बर्बाद हो सकता है। इसलिए ईरान के राष्ट्रपति रईसी ने हमास या फ़िलिस्तीनी नेताओं से मिलने के बजाए आले सऊदी से मुलाक़ात को वाजिब समझा।
बहरहाल, गाजा में इसरायल-हमास की जंगी गंगा में हाथ धोने चले पाकिस्तान के हाथ अब जलने लगे हैं। क्यों कि इसरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने भारत की सॉफ़्ट पॉवर से हमास से अलग किए गए गाजा के इन्फ़्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाने का ऐलान किया है। ईरान ने पाकिस्तान की चाल से किनारा कर लिया है। सऊदी अरब पहले ही पाकिस्तान को छिटक चुका है। मतलब यह कि पाकिस्तान एक बार फिर आइसोलेशन की ओर जा रहा है।
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