यूक्रेन के संविधान के अनुसार 20 मई को यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर Zelensky की राजनीतिक शक्तियाँ समाप्त हो चुकी हैं। यूक्रेन के संविधान के अनुसार हर हाल में 20 मई से पहले देश में चुनाव करवा कर नई सरकार को सत्ता सौंप देनी चाहिए थी। हालाँकि, उन्होंने ऐसा नहीं किया। वो राष्ट्रपति के पद पर बरकरार हैं। देश में चुनाव न होने के पीछे वो कारण यह बताते हैं कि देश युद्ध से जूझ रहा है और मार्शल लॉ लगा हुआ है।जब तक मार्शल लॉ लगा हुआ है तब तक चुनाव नहीं करवाए जा सकते। जेलेंस्की को डर है कि अगर चुनावों में वो हार गए नई सरकार उन्हें जेल में डाल सकती है और उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
हालांकि जो परिस्थितियां यूक्रेन में हैं वही परिस्थितियां रूस में हैं। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने समय पर चुनाव करवाए और बहुमत से जीत हासिल कर पांचवी बार राष्ट्रपति पद पर कार्यभार एक बार फिर संभाल लिया है। दरअसल, पुतिन की देश पर पकड़ मजबूत है। लेकिन यूक्रेन में ऐसा नहीं है। अगर यूक्रेन में आज चुनाव हो जाएं तो जेलेंस्की बुरी तरह हार सकते हैं। जेलेंस्की को यह डर भी है कि अगर वो चुनाव हार गए तो नई सरकार उन्हें जेल में डाल सकती है। क्योंकि एक बड़े वर्ग में जेलेंस्की को लेकर नाराजगी है।
यूक्रेन का एक बड़ा वर्ग जेलेंस्की को हारे हुए नेतृत्व की तरह देखता है। यूक्रेन के लगभग हर घर का एक रिश्तेदार रूस में रहता है। रूस के साथ युद्ध को अपने ही परिवार के साथ युद्ध की तरह देखते हैं। यूक्रेनियों के संबंध रूस के साथ रोटी-बेटी के है। इसके अलावा यूक्रेन से सोवियत रूस के समय की स्मृतियों को ध्वस्त करके जेलेंस्की ने अपने लोगों की सांस्कृतिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई है।
एक और बात यह है कि अधिकांश यूक्रेनियों (सत्ताधारी लोगों को छोड़कर) का मानना है कि रूस के साथ रहकर उनकी आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान सुरक्षित रह सकती है, न कि पश्चिम की गोद में बैठ कर।
दरअसल, जेलेंस्की की अनुभवहीनता और जिद्दीपन से अमेरिका भी ऊब चुका है। इसके अलावा अमेरिका अपने उद्देश्य में अमेरिका काफी हद तक कामयाब भी हो चुका है। अमेरिका, रूस को आर्थिक तौर पर कमजोर करना चाहता था। जेलेंस्की के कंधे पर बंदूक रख कर अमेरिका अपना निशाना लगा चुका है , यह बात अलग है कि रूस अभी तक खड़ा है और मजबूती से खड़ा है। अमेरिका देख रहा है कि जेलेंस्की उसके लिए लंबी रेस का घोड़ा नहीं बचे हैं। इसलिए अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने चुनाव कराने की वांछनीयता का संकेत दिया है।
रूस का खार्कोव आक्रमण कीव के लिए एक सैन्य झटके से कहीं अधिक है। यूक्रेन पर एक उच्च स्तरीय शांति सम्मेलन जून के मध्य में स्विट्जरलैंड के बर्गेनस्टॉक में निर्धारित है। हालांकि इस सम्मेलन की असफलता की कहानी इसके आयोजन से पहले ही लिखी जा चुकी है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने इसमें शामिल होने से इंकार कर दिया है। ग्लोबल साउथ के लीडर भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के शामिल होने की संभावना नहीं है। तो, इस सबका मतलब क्या था? खैर, ज़ेलेंस्की के लिए यह एक महत्वपूर्ण पहल है – जितना संभव हो उतने प्रभावशाली राज्यों को अपने पक्ष में करना।
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की हालिया यूरोप यात्रा में इस सब पर चर्चा हुई। हमें यह भी समझना होगा कि ज़ेलेंस्की के लिए पर्याप्त हथियारों के बिना और स्पष्ट गारंटी के बिना लड़ाई जारी रखना बहुत मुश्किल है। इन हालातों में स्विट्जरलैंड में सम्मेलन भी विफल हो जाता है, तो यह यूक्रेनी नेता के लिए एक बड़ा झटका होगा।
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